पुस्तक का नाम – वैदिक-विविध-विज्ञान
लेखक – डा. धर्मेन्द्र शास्त्री
वेद समस्त विद्याओं का मूल है। वेदों में सामाजिक शास्त्र, अध्यात्म शास्त्र, विज्ञान, ज्योतिष, कलाशास्त्र, व्यापार शास्त्र, राजनीति आदि अनेक विषयों पर सूक्ष्म और संक्षिप्त व्याख्यान हैं। महर्षि दयानन्द जी ने अपने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका के ब्रह्मविद्या विषय में यही सिद्धांत प्रश्नोत्तर रूप में लिखा है। उन्होने अपने इसी ग्रंथ में वेदों से अनेक विद्याएँ दिखाकर वेदों को समस्त विद्याओं का मूल सिद्ध किया है।
प्रस्तुत ग्रन्थ “वैदिक विविध विज्ञान” में महर्षि के सिद्धान्त का अनुसरण करते हुए वेदों से विभिन्न विद्याओं के प्रकाश की विवेचना की है। इस ग्रन्थ में विषय-वस्तु को इस प्रकार व्यवस्थित कर संजोया है कि वेदों के विभिन्न विषयों के समझने के लिए यह ग्रन्थ प्रकाश स्तम्भ की भाँति दिशा-निर्देश करता रहे।
लेखक ने अपने स्वाध्याय, अनुसंधान द्वारा वेदों के अमूल्य विज्ञान विद्या रूपी रत्न को इस लघु ग्रन्थ में पिरोने का एक लघु प्रयास किया है।
विज्ञान, दर्शन, संस्कृति, आचार-प्रणाली आदि सब कुछ वेदों की देन है और वेदों से किस प्रकार मानव व्यवहार में यह सब प्रवेश हुई इसका स्पष्टीकरण पुस्तक में 41 अध्यायों और 659 पृष्ठों द्वारा किया गया है।
यह ग्रन्थ प्रत्येक पाठक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी के लिए अतीव उपयोगी है तथा इसके सम्यक् अध्ययन से वे अवश्य ही लाभान्वित होंगे।
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