वेदों का महत्त्व- वेद आर्यजाति के प्राण हैं। ये मानवमात्र के लिये प्रकाशस्तम्भ
और शक्ति के स्त्रोत हैं। विश्व को संस्कृति का ज्ञान देने वाले वेद हैं। वेद ही विश्वबन्धुत्व, विश्वकल्याण और विश्वशान्ति के प्रथम उद्घोषक हैं। वेद ही मानवमात्र के लिये विकास का मार्ग प्रशस्त करते हुए सुख और शान्ति की स्थापना कर सकता है।
वेद और राजनीतिशास्त्र- मनु का यह कथन उपयुक्त है कि ‘सर्वज्ञानमयो हि
सः।’ (मनु. २.७) अर्थात् वेदों में सभी विद्याओं के सूत्र विद्यमान हैं। वेदों में राजनीतिशास्त्र से संबद्ध सैकड़ों मन्त्र हैं। इनमें राज्य के प्रति राजा के कर्तव्य, राजा-प्रजा के सम्बन्ध, राष्ट्र का स्वरूप, सभा समिति और विदथ की स्थापना, विधान और विधिनिर्माण, राजा का निर्वाचन, राज्याभिषेक, युद्ध, सैन्य-व्यवस्था, विविध शस्त्रास्त्र, अर्थव्यवस्था, शासन- प्रणाली आदि का संक्षिप्त वर्णन है। उपर्युक्त प्रायः सभी विषयों पर आवश्यक सामग्री उपलब्ध है। उसका ही इस ग्रन्थ में आलोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है।
वेदामृतम् – ग्रन्थमाला – इस ग्रन्थमाला के १६ भाग प्रकाशित हो चुके हैं। इस ग्रन्थ में वेदामृतम् के भाग १७ से २० की समस्त सामग्री संकलित की गई है। राज्य- प्रशासन, सभा समिति आदि का स्वरूप, सैन्य-व्यवस्था और विविध शस्त्रास्त्र आदि।
उपयोगिता की दृष्टि से चारों भागों को एक खंड में दिया जा रहा है।
सामग्री-संकलन- वेद केवल राजनीतिशास्त्र के ग्रन्थ नहीं हैं। उनमें
राजनीतिशास्त्र से संबद्ध सामग्री इधर-उधर बिखरी हुई है। उसको विषयानुसार संकलित किया गया है। महाभारत शान्तिपर्व, कौटिलीय अर्थशास्त्र और शुक्रनीति आदि में राजनीतिशास्त्र विषयक सामग्री बहुत अधिक है। मैंने प्रयत्न किया है कि उसमें से अत्यन्त उपयोगी सामग्री पाठकों के लिये लाभार्थ यथास्थान दी जाय। इससे पाठकों का ज्ञानवर्धन होगा और तुलनात्मक अध्ययन भी हो सकेगा। वेदों में सूत्ररूप में दिये विषयों का विशदीकरण भी इससे प्राप्त हो सकेगा।
राजनीतिशास्त्र – राजनीतिशास्त्र मानवजीवन का अंग है। राष्ट्र का प्रशासन जनता के विकास, सुख-शान्ति, उद्योग, सुरक्षा, आर्थिक प्रगति आदि के लिये उत्तरदायी है। प्रशासन की उत्कृष्टता से ही देश के उत्कर्ष को मार्ग प्रशस्त होता है। जनता की सुख-समृद्धि
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