पुस्तक का नाम – वेद में ईश्वर का स्वरूप
लेखक का नाम – वेद प्रकाश
ईश्वर के स्वरुप के विषय में विभिन्न सम्प्रदायों के भिन्न – भिन्न विचार है। कोई ईश्वर को निराकार बताता है, कोई साकार, कोई निराकार किन्तु अवतार लेने वाला, कोई एकदेशी तो कोई व्यापक, इस प्रकार अनेकों विचारधाराऐं ईश्वर के सम्बन्ध में प्रचलित है। ईश्वर के स्वरुप के सम्बन्ध में प्रत्यक्ष और अनुमान प्रमाण आंशिक रुप से ही साध्य है अतः ईश्वर के स्वरुप को दर्शाने में मात्र शब्द प्रमाण ही समर्थ है। निभ्रान्त और ईश्वर का वचन होने से वेद ही शब्द प्रमाण के रुप में सर्वाधिक प्रसिद्ध और मान्य है तथा सभी ऋषि और मुनियों के द्वारा वेद को ही शब्दब्रह्म कहा गया है, अतः वेदों द्वारा ही ईश्वर के वास्तविक स्वरुप का व्याख्यान सम्भव है। जैसा वेदों में ईश्वर का वर्णन किया गया है वही वर्णन ईश्वर के विषय में प्रमाणिक और सत्य है। जैसा वेदों में ईश्वर का स्वरूप वर्णित किया गया है वैसा किसी भी ग्रंथ में होना सम्भव नही है अतः ईश्वर के स्वरूप को जिज्ञासुओं को वेदों से समझना चाहिये और ईश्वर के स्वरूप को जानकर तदानुसार उसकी उपासना करनी चाहिये।
प्रस्तुत पुस्तक में वेदों के विभिन्न सूक्तों के द्वारा ईश्वर के स्वरूप, कर्म का वर्णन किया गया है। पुस्तक का आधार वेद होने से यह पुस्तक अपने आप में एक प्रमाणिक स्रोत है। यह पुस्तक ईश्वर के विभिन्न कार्यों और स्वभावों का यथायोग्य वर्णन करती है जिससे ईश्वर के विषय में फैले विभिन्न साम्प्रदायिक भ्रमों का नाश हो जाता है। यह पुस्तक आध्यत्मिक ज्ञान चर्चा करने वालों और उपदेशकों के लिए एक मार्गदर्शक का कार्य करेगी।
आध्यात्मिक ज्ञान के पिपासु पाठकों को इस पुस्तक का अवश्य ही अध्ययन करना चाहिये तथा जो पाठक वेदों को पढने में असमर्थ है तथा ईश्वर के स्वरुप को जानने के विषय में रुचि रखते हैं, वे भी प्रस्तुत पुस्तक द्वारा लाभान्वित हो सकते है।
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