पुस्तक का नाम – वेदों में पुनरुक्ति दोष नहीं
सम्पादक – जगदेवसिंह सिद्धान्ती शास्त्री और डा.रामनाथ वेदालंकार
वेदों के अध्येता इस बात से परिचित हैं कि वेदों में पदों, वाक्यखंडो, वाक्यों तथा पूरे मन्त्रों की पुनरुक्तियाँ बहुत है। प्राचीन काल से ले कर अब तक इन पुनरुक्तियों पर अनेको आक्षेप हो रहे हैं। किस पुनरुक्ति को दोष कहें किस पुनरुक्ति को नहीं इसका विस्तृत विवेचन महर्षि यास्क ने किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि वेदों में कहीं भी पुनरुक्ति दोष नहीं है।
आजकल के कुछ तथाकथित विद्वान और वामपंथी गढ इस बात को विभिन्न पत्रिकाओं और लेखों में उछाल रहे हैं कि वेदों में पुनरुक्ति इसलिए है कि एक वेद के मन्त्र दूसरे वेद में लिए गये है। इसके लिए ऐसे ग्रन्थ की आवश्यकता है जिसमें इस विषय पर सप्रमाण समाधान प्रस्तुत किया गया हो।
प्रस्तुत ग्रन्थ में २४ अध्यायों में विभिन्न विद्वानों के लेखों का संग्रह इसी शंका के समाधानार्थ किया गया है। इसमें अनेको प्रमाणों और तर्कों के माध्यम से बताया है कि वेदों में सदोष पुनरुक्ति कहीं भी नहीं है तथा आक्षेपकर्ताओं के आक्षेप निराधार है।
अंत में पुस्तकों में जिन विद्वानों के लेख आये हैं उनका संक्षिप्त जीवन परिचय भी दिया हुआ है और पुस्तक में आये विभिन्न वेद-मन्त्रों की मन्त्रानुक्रमणिका भी है।
यह पुस्तक बढिया कागज और आकर्षक छपाई की विशेषता से परिपूर्ण है। पाठकगण इस पुस्तक द्वारा अवश्य ही ज्ञानार्जन करेंगे।
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