संसार के साहित्य में इतिहास का स्थान बहुत ऊंचा है। किसी जाति को सजीव रखने, अपनी उन्नति करने तथा उस पर दृढ़ रहकर सदा अग्रसर होते रहने के लिए संसार में इतिहास से बढ़कर दूसरा कोई साधन नहीं है। वीर पुरुषों के गौरवपूर्ण आदर्श चरित्रों से मनुष्य जाति एवं राष्ट्रों में एक संजीवनी शक्ति का संचार होता है। इसीलिए प्रत्येक देश अपने वीर पूर्वजों के शिक्षाप्रद और
उत्साहवर्धक विस्तृत चरित्र लिखकर उनका सम्मान करते हैं। राजपूताने में भी ऐसे कई अनुकरणीय, निस्वार्थी और आदर्श वीर हुए हैं, जिनमें वीर शिरोमणि आर्यकुल-कमल-दिवाकर महाराणा प्रतापसिंह सबसे अग्रगण्य हैं। महाराणा प्रतापसिंह का आसन राजपूताने के इतिहास में ही नहीं, किंतु सम्पूर्ण भारतवर्ष के इतिहास में भी बहुत ऊंचा है। राजपूताने के इतिहास को
इतना अधिक उज्ज्वल, आदर्श तथा महत्वपूर्ण बनाने का श्रेय उक्त महाराणा
को ही है। वह स्वतंत्रता का पुजारी, अपने गौरव का रक्षक एवं आत्माभिमान
और वीरता का अवतार था। यह बड़े खेद की बात है कि ऐसे प्रातःस्मरणीय
हिंदूपति महाराणा का ऐतिहासिक दृष्टि से कोई सच्चा जीवन चरित्र अब तक किसी भाषा में प्रकाशित नहीं हुआ है। कर्नल टॉड ने यद्यपि बहुत श्रम से राजपूताने का खोजपूर्ण उत्तम इतिहास लिखा है, तथापि उसमें बहुत सी भूलें रह गई हैं, क्योंकि उसने बहुधा चारणों, भाटों आदि के गीतों, ख्यातों और प्रचलित दंतकथाओं के आधार पर अपने इतिहास की नींव रखी है। उस समय उसको पुरातत्व अनुसंधान से कोई विशेष सहायता न मिल सकी। उसके राजपूताने के इतिहास में जैसे अन्यत्र कई भूलें रह गई हैं, वैसे महाराणा प्रतापसिंह के जीवन चरित्र में भी कई बड़ी-बड़ी भूलें रह गई हैं और कई आधारशून्य कल्पित बातें भी लिखी गई हैं जिनका
निराकरण करना आवश्यक है
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