Vedrishi

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विवेकविलास

Vivekvilas

450.00

Subject : Vivekvilas
Edition : 2014
Publishing Year : 2014
SKU # : 37212-HP00-0E
ISBN : 8190348388
Packing : HardCover
Pages : 288
Dimensions : 14X22X6
Weight : 402
Binding : HardCover
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‘विवेकविलास’ एक अद्भुत ग्रन्थ है। इसमें जीवन के नानों विषयों का सम्यक् परिपाक हुआ है। गृहस्थ से लेकर साधु जीवन तक के निर्देश इस ग्रन्थ के 1327 श्लोकों में गुम्फित है। प्रहर से लेकर वर्ष और जीवनचर्या तक इसमें आ गई है। इसके सम्यक् अध्ययन के बाद यह विचार सहज ही बन जाता है कि इसमें गागर में सागर है। मुनिवर्य जिनदत्तजी के जीवन का यह सारवाक्यवत् है। इसीलिए इसे क्या जैन और क्या अजैन- लोकाश्रित और राज्याश्रित सभी छोर पर ज्ञानियों ने बहुत आदर और सम्मान दिया है।

कुछ वर्षों पूर्व जब मैं सूत्रधार मण्डन के वास्तु ग्रन्थों पर कार्य कर रहा था, वास्तुमण्डनम् में ‘विवेकविलोसेपि’ सङ्केत देखकर चौंक गया। सोचा कि यह कौनसा ग्रन्थ है ? फिर, इसके कई सारे उद्धरण प्रभाशङ्कर ओघड़भाई सोमपुरा, भगवानदास जैन आदि ने अपने वास्तुविषयक ग्रन्थों में दिए हैं। इसके कई उद्धरण लक्षण प्रकाश में भी देखने को मिले तो इसे देखने की प्रबलतर इच्छा हुई। कई ग्रन्थालयों में इसकी खोज शुरू की। जयपुर की प्राकृत भारती और लालभवन, अजमेर स्थित दादाबाड़ी से लेकर अन्यत्र जहाँ भी इसकी सम्भावना थी, पता किया किन्तु विफलता ही हाथ लगी। ‘षड्दर्शन समुच्चय’ के सम्पादक की भूमिका से पता चला कि यह ग्रन्थ बहुत पहले, 1919 ई. में आगरा के बेलनगंज स्थित सरस्वती ग्रन्थमाला कार्यालय से प्रकाशित हुआ है किन्तु उक्त कार्यालय अब नहीं रहा। फिर, अहमदाबाद के कुछ मित्रों ने बताया कि यह गुजराती टीका सहित विक्रम संवत् 1954 में डायमण्ड जुबली प्रेस और केवल गुजराती में मेघजी हीरजी बुक सेलर, मुम्बई से 1923 ई. में प्रकाशित हुआ, लेकिन इन दिनों कहीं देखने में नहीं आता। वहाँ के चोपड़ी बाजार के ईश्वरभाई लालजीभाई मर्थक के पुनीतभाई मर्थक से उक्त दोनों प्राचीन पाठ सम्भव हुए। ज्यों-ज्यों अपनी खोजबीन में विलम्ब हुआ, जिज्ञासा बढ़ती ही गई।

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