Vedrishi

Free Shipping Above ₹1500 On All Books | Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 | Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |
Free Shipping Above ₹1500 On All Books | Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 | Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |

व्याकरण दर्शन को कैय्यट का योगदान

Vyakaran Darshan ko Kaiyyat ka Yogdan

500.00

Subject : History
Edition : 2021
Publishing Year : 2021
SKU # : 36963-PP00-0H
ISBN : 978171102594
Packing : Hard Cover
Pages : 347
Dimensions : 14X22X6
Weight : 503
Binding : Hard Cover
Share the book

पुस्तक का नाम व्याकरण दर्शन को कैय्यट का योगदान
लेखक का नाम डॉ. रामप्रकाश वर्णी

शिक्षाप्रभृति षड्विध वेदाङ्गों में मुखं व्याकरणं स्मृतम् के अनुसार व्याकरण का सर्वोपरि महत्त्व निर्विवादतया सार्वजनीन है। महाभाष्यकार भगवान पतञ्जलि ने भी इसे पडङ्ग में प्रधान बताकर एतज्ज्ञानार्थ विहित उपाय को फलवान् माना है।

यद्यपि व्याकरण के अतिरिक्त उपनिषद्, महाभारत, स्मृतिग्रन्थ आदि में शब्द ब्रह्म का विस्तार से वर्णन हुआ है तथापि धात्वार्थ, लकारार्थ, सुबर्थ, समासशक्तिस्वरूपऔर स्फोटआदि व्याकरणशास्त्रीय तत्त्वों का विशकलित वर्णँन वहां नहीं है। इसका सम्पूर्ण निदर्शन तो महावैयाकरण भर्तृहरि जिन्होने व्याडि की समस्त दार्शनिक उद्भावनाओं से उपेत महर्षि पतञ्जलि के हाद्रभावों का उपादान कर एक सुव्यवस्थित दर्शन के रूप वाक्यपदीयम् जैसे महान ग्रन्थ का प्रणयन कर उस पर स्वोपज्ञवृत्ति लिखी है तथा पातञ्जल महाभाष्यम् पर महाभाष्यदीपिका जैसी सशक्त व्याख्या की है, के ग्रन्थों में उपलब्ध होता है।

भर्तृहरि ने वाक्यपदीयम्, स्वोपज्ञवृत्ति और महाभाष्यदीपिका रूप अपनी ग्रन्थत्रयी में जिन गुरुगम्भीर दार्शनिक सिद्धान्तों को व्याख्यायित किया है, उन्हीं को सेतु रूप में ग्रहण करके जैयट पुत्र कैयट ने प्रदीप का प्रणयन कर महाभाष्यार्णव को पार किया है।

जहाँ तक उनके व्याकरण दर्शन को योगदान का प्रश्न है, वे अपने उपजीव्य पतञ्जलि एवं भर्तृहरि के अस्पष्ट भावों को जनसामान्य के लिये सुव्यक्त बनाकर व्याकरण दर्शन में अपना अमूल्य योगदान करते हैं। कहीं कहीं वे इनसे अलग होकर भी अपनी बात कहते हैं, वहाँ वे मौलिक हैं। आवश्यकता होने पर वे स्थान स्थान पर हरिटीकाओं को भी उद्धृत करते हैं तथा कहीं कहीं विस्तार भिया उन्हें सङ्केतित करके ही आगे बढ़ जाते हैं।

प्रस्तुत पुस्तक में वैयाकरण दर्शन में कैय्यट के योगदान को प्रस्तुत किया गया है। सुविधा की दृष्टि से इस ग्रन्थ को 13 अध्यायों में विभाजित किया है। सभी की संक्षिप्त विषय वस्तु अधोलिखित है

प्रथम अध्याय – ‘संस्कृतव्याकरण दर्शन का उद्भव और विकासप्रस्तुत ग्रन्थ के इस अध्याय में संस्कृतव्याकरण शास्त्र अथवा शब्द – दर्शनके स्वरूप को स्पष्ट करते हुए एक ही शब्दतत्त्व की प्रमुख स्थितियों को प्रदर्शित किया गया है तथा शब्दब्रह्म के स्वरूप ज्ञान से मुक्ति का प्रतिपादन किया गया है। अन्त में व्याकरण दर्शन की सम्पूर्ण ऐतिहासिक परम्परा का प्रदर्शन करते हुए इसे उपसंहृत किया गया है।

द्वितीय अध्याय – ‘आचार्य कैयट का व्यक्तित्व और कर्तृत्वइस अध्याय में आचार्य कैयट का जीवन परिचय प्रस्तुत करते हुए उनकी महाभाष्य व्याख्या प्रदीपकी विशेषताओं को प्रदर्शित किया गया है। अन्त में कैयट की व्याख्या शैली को प्रमाणपुरस्सर प्रस्तुत करते हुए इस अध्याय को समाप्त किया गया है।

तृतीय अध्याय – ‘शब्दस्वरूप विमर्शइस अध्याय में शब्द के स्वरूप की विशद विवेचना करते हुए उसे महान देव मानकर उसके सायुज्य से मुक्तिलाभ का होना बताया है। शब्द का नित्यत्व, साधुशब्दप्रयोग से धर्मलाभ, शब्दों की प्रवृत्तियाँ एवं वाणी तथा पदों के भेद प्रदर्शित करते हुए व्याकरण के प्रयोजनों को प्रस्तुत किया गया है।

चतुर्थ अध्याय – ‘अर्थस्वरूप विमर्शइस अध्याय में अर्थ की परिभाषा, आकृति पदार्थतावाद, द्रव्यपदार्थतावाद, शब्द का द्रव्याभिधेयत्व एवं आकृतिपदार्थवाद और द्रव्यपदार्थतावाद की व्याकरण में अनुपपन्नता का प्रदर्शन करते हुए प्रकृत में कैयट के मत को प्रदर्शित किया गया है। अन्त में अर्थ की नित्यता का प्रतिपादन कर इस अध्याय को पूर्णता प्रदान की गयी है।

पञ्चम अध्याय – ‘सम्बन्धस्वरूप विमर्शइस अध्याय में सम्बन्ध की नित्यता और सम्बन्ध के भेदों को प्रस्तुत कर तत्सम्बन्ध में कैयट के विचारों को सुस्पष्टता के साथ विवृत किया गया है।

षष्ठ अध्याय – ‘पदवाक्यस्वरूप विमर्शप्रस्तुत अध्याय में पद का स्वरूप वाक्य की परिभाषा, अखण्डवाक्य का स्वरूप, पदवाद और वाक्यवाद का आधार क्रिया की वाक्यार्थता का प्रदर्शन करते हुए प्रतिभा का वाक्यार्थत्व प्रतिपादन किया गया है।

सप्तम अध्याय – ‘धातु और तिङन्त – विमर्शइस अध्याय में धातु की परिभाषा को प्रदर्शित करने के लिये क्रियावचनो धातुःऔर भाववचनो धातुःइन दोनो पक्षों को व्याख्यायित किया गया है। अन्त में क्रिया के भेदों को प्रदर्शित करते हुए ज्ञा अवबोधने’, ‘इषु – इच्छायाम्एवं पत्लृ गतौ धातुओं के अर्थप्रदर्शनपूर्वक सकर्मकत्वाकर्मकत्वकी विवेचना की गयी है।

अष्टम अध्याय – ‘लकारार्थ विमर्शनामक इस अध्याय में काल के स्वरूप का निरूपण करते हुए लडादि दश लकारों के अर्थों को सप्रमाण प्रस्तुत किया गया है।

नवम अध्याय – ‘सनादि, नाम एवं त्वआदि भावप्रत्ययार्थविमर्श, नामक इस अध्याय में सन् आदि ग्यारह प्रत्ययों के अर्थ प्रदर्शित करते हुए नामार्थ का निरूपण किया गया है। शब्द से स्वरूपबोध,

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Vyakaran Darshan ko Kaiyyat ka Yogdan”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recently Viewed

You're viewing: Vyakaran Darshan ko Kaiyyat ka Yogdan 500.00
Add to cart
Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist