महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने एक यज्ञ की पद्धति का संकलन किया है। इस पद्धति में जिन मन्त्रों को रखा है और जिस क्रम से रखा है और जो पद्धति बनाई है इस पर सांगोपांग विवेचन आज तक किसी ने नहीं किया। उपलब्ध समस्त आर्षग्रन्थों में ऐसी पूर्ण पद्धति किसी ऋषि की नहीं है, यह कहने का हम साहस कर सकते हैं। ऋषिवर दयानन्द की यह विचित्र देन है। यह उन की आर्ष बुद्धि का एक चमत्कार है।
यज्ञ के मन्त्रों की व्याख्या अनेक विद्वानों ने की है, यज्ञ के सम्बन्ध में अन्य उपयोगी बातें भी उन ग्रन्थों में हैं। वे बातें उन्हीं ग्रन्थों को पढ़कर जाननी चाहिये। मैंने अपने समस्त ग्रन्थों में एक भी ऐसी बात नहीं लिखी जो किसी ग्रन्थ में पहले लिखी हो। परन्तु जिस समय महर्षि की कोई बात समझ में न आती है तो उस समय लिखने की इच्छा अवश्य हो जाती है। आओ हम सब मिलकर यत्न करें और महर्षि को समझें। यदि मेरे इस पुरुषार्थ से ऋषि की एक बात भी स्पष्ट हो गई तो मैं अपने को कृतकृत्य समझूगा।
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