वेद परम्परा रूप में भारत की निधि हैं। इन्हीं की व्याख्या एवं अनुव्याख्या के रूप में समस्त भारतीय वाङ्गय का विस्तार हुआ है। भारतीय मान्यता के अनुसार वेद अपौरुषेय (अर्थात् मनुष्यकृत नहीं है) हैं। वे सहस्रों वर्षों से मानव जीवन के कल्याण के साधन बन कर उन्हें अनुप्राणित करते आये हैं। वेदों की रचना मन्त्रों के रूप में हुई है। मन्त्रसमूह का नाम ‘संहिता’ है। सभी मन्त्रों को चार संहिताओं में संकलित किया गया है, जिनके नाम इस प्रकार है:
(१) ऋक् संहिता
(२) यजुः संहिता
(३) साम संहिता
(४) अथर्व संहिता।
प्रायः सभी विद्वानों ने ‘वेद’ शब्द को ‘विद्’ धातु से निष्पत्र माना है। ‘विद्’ धातु अनेकार्थ है।’ मुख्य रूप से ‘विद् ज्ञाने’ धातु से ही ‘वेद’ शब्द को व्युत्पन्न माना गया है। तब ‘वेद’ शब्द का व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ होगा- ज्ञान। यद्यपि इतिहास, भूगोल व गणित इत्यादि के ज्ञान का न्यूनाधिक संकेत वेद में अवश्य प्राप्त होता है, तदपि इनके लिए ‘वेद’ शब्द प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है। ‘वेद’ शब्द के द्वारा वह ईश्वरीय ज्ञान अभिप्रेत है जिसका पहले पहल
ऋषि, महर्षियों ने दर्शन किया था।
Reviews
There are no reviews yet.