पुस्तक का नाम – योगरत्न समुच्चयः
हिन्दी अनुवाद और व्याख्याकार – आचार्य बालकृष्ण
प्रस्तुत आयुर्वेदीय रचना योगरत्न समुच्चय 10 वी. शती ई. की है। इससे पूर्व स्वदेशी राज्यों के संरक्षण में आयुर्वेदीय पद्धति खूब फल – फूल रही थी। उस समय तक आयुर्वेद – वाङ्मय बहुत ही आश्चर्यजनक रूप से समृद्ध हो चुका था। विदेशी आक्रान्ताओं से भी वह तब तक लगभग सुरक्षित था। ऐसे विशाल वाङ्मय से सर्वोत्तम एवं सारभूत चिकित्सकीय योगों को एकत्र करने की इच्छा होना स्वाभाविक था। इसी से प्रेरित होकर कश्मीर के महान् वैद्य तीसटाचार्य के सुपुत्र, नानाशास्त्रनिष्णात वैद्यशिरोमणि आचार्य चन्द्रट ने अपने विशाल पैतृक ग्रन्थभण्डार में उपलब्ध नाना ग्रन्थों से चुने हुए योगरत्नों को इस ग्रन्थ में संकलित किया था। ग्रन्थ के आरम्भ में अपना अभिप्राय प्रकट करते हुए आचार्य कहते हैं –
उद्धृत्यामृतवत् सारमायुर्वेदमहोदधेः। क्रियते चन्द्रटेनैष योगरत्नसमुच्चयः।। – योगरत्न समुच्चय
अर्थात् आयुर्वेद महासागर का आवगाहन कर उससे अमृत तुल्य सार लेकर चन्द्रट द्वारा यह योगरत्न समुच्चय नामक ग्रन्थ रचा जा रहा है।
इस पूरे संकलन में प्राचीन मुनियों एवं आचार्यों के वचनों को उनके नाम का उल्लेख करते हुए बड़ी कुशलता से संकलित भव्य ग्रन्थ का रूप दिया है, जिससे यह ग्रन्थ आयुर्वेदीय वाङ्मय में अद्भूत एवम् अनुपम रचना के रूप में विख्यात हुआ है।
आयुर्वेद के इतिहास में चन्द्रट विरचित योगरत्न समुच्चय के महत्त्व एवं उपादयेता की चर्चा विशेष रूप से मिलती है, परन्तु अभी तक यह ग्रन्थ प्रकाश में नहीं आ सका था। पतञ्जलि विश्वविद्यालय की ओर से अति महत्त्वपूर्ण प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थों के प्रकाशन की योजना चल रही है। इसी के अन्तर्गत इस ग्रन्थ को प्रकाशित किया गया है। यह ग्रन्थ आयुर्वेद जगत् को एक अनुपम उपहार है। चन्द्रट ने अपने समय में उपलब्ध विशाल आयुर्वेद – वाङ्मय से इस ग्रन्थ में उत्तमोत्तम योगों का संग्रह किया है। अत एव ग्रन्थ का नाम योगरत्न समुच्चय रखा गया है। स्वयं चन्द्रट ने इसे आयुर्वेद – महोदधि के मन्थन से प्राप्त अमृत तुल्य सार बतलाया है। चन्द्रट ने अपने पिता भिषग्वर तीसट के चरणों में बैठकर इस विशाल वाङ्मय का गहन अवगाहन किया था। वे आयुर्वेद वाङ्मय के महान् पारदृश्वा आचार्य थे। जैसे अद्भूत एवं अमोघ योगरत्नों का अक्षय निधान है। मधुमक्षिकाओं द्वारा नाना पुष्परसों से सार लेकर बनाया गया मधु जैसे अनुपम होता है, इसी प्रकार नानाग्रन्थों से उत्तम सार लेकर बनाया गया यह योगरत्न समुच्चय भी आयुर्वेद की अनुपम रचना है।
योगरत्नसमुच्चय का प्रतिपाद्य विषय –
योगरत्न समुच्चय निदान आदि से रहित केवल चिकित्सा पर केन्द्रित ग्रन्थ है। इसमें मुख्यतः चिकित्सकीय योगों का संग्रह है, अतः इसे योगरत्न समुच्चय नाम दिया है। यह ग्रन्थ आठ अधिकारों में विभक्त है, जैसा कि आरम्भ में ही ग्रन्थकार ने बताया है –
“घृततैलचूर्णगुटिकावलेहगदशान्तिकर्म्मकल्पाख्यैः। अधिकारैः प्रत्येकं वसुसंख्यैर्भूषितो भुवने।।”
अर्थात् घृत, तैल, चूर्ण, गुटिका, अवलेह, गदशान्ति, पञ्चकर्म एवं कल्प – इन आठ अधिकारों से भूषित होकर यह ग्रन्थ भुवन में प्रसिद्ध हुआ है। आरम्भ के चार अधिकारों में विविध रोगों की चिकित्सा में उपयोगी घृत, तैल, चूर्ण, गुटिका एवं अवलेहों का संकलन है। आगे गदशान्त्याधिकार में ज्वर से लेकर रसायन वाजीकरण तक चिकित्सा का विस्तृत वर्णन है। यह वर्णन कायचिकित्सा, शालाक्य तन्त्र, शल्यतन्त्र, विषचिकित्सा, भूततन्त्र, कौमारभृत्य, रसायन, वाजीकरण – इन आयुर्वेद के आठों अङ्गों के विभागानुसार किया गया है। यह वर्णन भी योग – केन्द्रित है, अर्थात् इसमें नाना प्राचीन ग्रन्थों से उत्तमोत्तम चिकित्सकीय योग संकलित हैं।
इसके अनन्तर पञ्चकर्माधिकार में चरक, सुश्रुत, भेल, पराशर, हारीत, चक्षुष्येण, क्षारपाणि आदि के वचनों का गुम्फन करते हुए वमन, विरेचन, निरूह, वस्ति एवम् नस्य का विस्तृत विवेचन किया है। कल्पाधिकार में अम्लवेतस, सुवर्ण, चित्रक, काकमाची, शतावरी, भल्लातक, हरीतकी, त्रिफला, लशुन, गुग्गुल, शिलाजतु, गुडूची, वराही, कुक्कुटी, एरण्ड, कुङ्कुम, गोक्षुर, अलम्बुषा आदि के कल्प का वर्णन है।
प्रस्तुत संस्करण के अन्त में कतिपय उपयोगी परिशिष्टों का संकलन है। प्रथम परिशिष्ट में योगरत्न समुच्चय की उन हस्तलिखित प्रतिलिपियों का परिचय दिया गया है, जो समीक्षात्मक सम्पादन हेतु उपलब्ध है। इसके अन्तर्गत प्राप्त प्रतिलिपियों के कतिपय पत्रों की प्रतिकृति भी प्रस्तुत की गई है। द्वितीय परिशिष्ट में योगरत्न समुच्चय में प्रयुक्त प्राचीन मान का विवरण देते हुए आधुनिक माप – तोल के साथ उसकी तुलना प्रस्तुत की गई है। तृतीय परिशिष्ट में योगरत्न समुच्चय में संकलित योगों की सूची अकारादि क्रम में प्रस्तुत की गई है। चतुर्थ परिशिष्ट में योगरत्न – समुच्चय में स्मृत ग्रन्थों के अनुसार योगों की सूची दी गई है। पञ्चम परिशिष्ट में उन प्रकाशित सन्दर्भ ग्रन्थों की सूची दी गई है।
हिन्दीभाषान्तर के साथ पहली बार प्रकाशित यह प्राचीन ग्रन्थ ‘योगरत्न समुच्चय’ आयुर्वेद के छात्रों, आचार्यों एवं चिकित्सकों के लिए विशेष उपादेय सिद्ध होगा। सुगम हिन्दी – अनुवाद सहित होने से यह अन्य स्वाध्यायशील पाठकों के लिए भी आयुर्वेद – विषयक ज्ञानवृद्धि में सहायक सिद्ध होगा। इसमें प्रस्तुत बहुत से सरल एवं घरेलू योगों से आम जनता भी लाभान्वित हो सकेगी।
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