श्रीमद्भवद्गीता सम्पूर्ण संसार के मानवों के लिए श्रेयोमार्ग का प्रदर्शक तथा समस्त शास्त्रों का सार है, इसमें महर्षि वेदव्यास ने श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद के माध्यम से कर्म, भक्ति और ज्ञान की महत्ता और व्यावहारिक स्वीकार्यता का उपदेश देकर विश्वमानव के लिए एक अमूल्य उपहार दे दिया है, गीता के महत्त्व के विषय में प्राचीन और नवीन चिंतकों ने पर्याप्त विचार किया है। गीता का विश्व की सभी प्रमुख भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। गीता पर शङ्कराचार्य, रामानुजाचार्य तथा अन्य-२ आचार्यों ने भाष्य और टीकाओं का प्रणयन किया है। गीता के अंश विविध कक्षाओं के पाठ्यक्रम में भी निर्धारित है। जिन को सरल करने के लिए अनेक विद्वान और विदुषियों ने व्याख्याएँ लिखी हैं। गीता स्वाध्याय के लिए भी अत्यन्त उपादेय ग्रन्थ है जिसे सेवारत और सेवानिवृत्त सभी महानुभाव पढ़ते आये हैं, और पढ़ते रहेंगे। इसका अध्ययन, श्रवण और मनन ज्ञानयज्ञ कहा जाता है। इस ज्ञानयज्ञ को करने वाले पर प्रभु की कृपा का वर्षण होता है।
गीता मूल रूप से संस्कृत में लिखी गयी है। समय के साथ-२ मूल भाषा को समझाने के लिए गीता के भाष्यकारों ने अनेक प्रयास किये हैं। अपने युग की अपेक्षाओं को ध्यान में रखते हुए संस्कृत साहित्य की उदभट विदुषी डॉ० अन्नपूर्णा मिश्र ने इसकी तत्त्वबोधनी टीका लिखी है। जिसमें अन्वय, पदार्थ, श्लोकार्थ और विशेष ज्ञातव्य शीर्षकों के अन्तर्गत महत्त्वपूर्ण सामग्री सरल भाषा में दी गयी है। इस तत्त्वबोधनी टीका से श्रीमद्भगवद्गीता के पाठक और जिज्ञासु अवश्य लाभान्वित होंगे, ऐसा मुझे विश्वास है। अनेक ग्रन्थ कर्ती डॉ० अन्नपूर्णा मिश्रा का मैं इस सारस्वत साधना के लिए अभिनन्दन करता हूँ।
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