वाल्मीकि रामायण भारतवर्ष का प्राचीनतम राष्ट्रीय महाकाव्य है, जिसमें भारतीय आर्यों के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक संगठन एवं विचारों का वर्णन मिलता है। एक धर्म-ग्रन्थ के रूप में इस महाकाव्य को जो स्थान भारतीय जन- जीवन में प्राप्त हुआ, वह अन्य किसी ग्रन्थ को नहीं मिल सका है। किन्तु रामायण एक कोरा धर्म-ग्रन्थ मात्र नहीं है। इसमें प्राचीन भारतीय संस्कृति के एक महान युग से सम्बन्धित ज्ञान का अनमोल एवं अगाध भंडार छिपा हुआ है। भारतीय संस्कृति की महान उपलब्धियों का अन्वेषण करने वाले अनेक अनुसन्धान कर्ताओं ने वेद, उप- निषद्, पुराण, महाभारत तथा अन्य प्राचीन साहित्यिक ग्रन्थों का विभिन्न दृष्टिकोण से अनुशीलन किया है। किन्तु रामायण के ऊपर आरोपित धार्मिक कलेवर के कारण ही सम्भवतः इसके समीक्षात्मक, व्यावहारिक एवं आधुनिक दृष्टिकोण से अध्ययन की ओर अपेक्षाकृत कम ध्यान गया है। यही कारण है कि स्वर्गीय श्रीनिवास शास्त्री को कहना पड़ा था कि-
“The ordinary reader of the Ramayana feels edified by the subject and is carried away by the entrancing story. He does not pause to note the numerous references scattered on every page to the social and political conditions of the time. These references are mostly hints which require patient co-ordination and reflection for a full understanding. When a conscientious and discriminating resear- cher puts these hints together and gives a more or less coherent picture of our ancient civilisation, the result is a rich measure of the joy of discovery.”
उस समय से लेकर आज तक कतिपय विद्वानों ने रामायणीय समाज, संस्कृति एवं शासन व्यवस्था का अध्ययन किया है। किन्तु उनका ध्यान इस ओर नहीं गया कि यह इस महाकाव्य में निहित राजनीतिक विचारों का भी विशुद्ध राजनीतिक दृष्टि से व्यवस्थित एवं सुसम्बद्ध संकलन तथा सप्रमाण विवेचन प्रस्तुत करने का प्रयत्न करते। प्रस्तुत ग्रन्थ इसी दिशा में किया गया एक लघु प्रयास है।
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