पुस्तक एक : चिन्तन अनेक
‘वैदिक चिन्तन की नयी दिशा’ नामक यह उपयोगी पुस्तक पाठकों को सौंपते हए मुझे प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है। इसमें वैदिक शास्त्र, वैदिक इतिहास, वैदिक महापुरुष, वैदिक समाज अर्थात् आर्यसमाज और वर्तमान हिन्दू समाज जो कि परम्परा से वैदिक समाज से ही सम्बद्ध है, उससे सम्बन्धित विभिन्न बिन्दुओं पर प्रेरक और विचारणीय नवीन चिन्तन प्रस्तुत किया है।
इस पुस्तक में लेखक ने अनेक भ्रान्तियों का तर्कपूर्ण समाधान उपस्थित किया है और शोध आधारित नये उत्तर प्रस्तुत किये हैं। हमारे जीवन में वेदों के महत्त्व को दर्शाते हुए पहली बार महाभारत में वर्णित धृतराष्ट्रगांधारी के सौ पुत्रों के ऐतिहासिक सच के रहस्य को इसमें उजागर किया है। इसी प्रकार योगदर्शन के व्यास-भाष्य में वर्णित चौदह भुवनों की पहचान करने का प्रयास किया है। डॉ. अम्बेडकरवादी आधुनिकजन उनके मनु और वर्णव्यवस्था विषयक समर्थक मूल मन्तव्यों को आजकल छिपा लेते हैं, अथवा प्रकट नहीं करते। लेखक ने प्रमाण सहित उन मन्तव्यों को पाठक के समक्ष रखा है। इसी प्रकार वैदिक धर्म, आर्य-द्रविण, आर्यो के उद्भव, प्रसार एवं इतिहास को लेकर पूर्वाग्रही पाश्चात्य लेखकों ने अनेक भ्रान्तियाँ फैला रखी है। लेखक ने इस पुस्तक में उन सब विषयों पर शोधपूर्ण तथ्य देकर उन सभी भ्रमों का निराकरण किया है। महर्षि वाल्मीकि, योग-दर्शन के रचयिता महर्षि पतंजलि, रामभक्त हनुमान, महात्मा बुद्ध आदि महापुरुषों के जीवन विषयक भ्रम लेखकों ने फैला रखे हैं। उन सबको दर करके उनके जीवन के वास्तविक तथ्यों से पाठकों को अवगत कराया गया है। आर्यसमाज एवं हिन्दूसमाज विषयक प्रेरक लेख भी इस पुस्तक में संकलित हैं। – – >
यह सभा की ‘परोपकारी’ पत्रिका में समय-समय पर प्रकाशित लेखक के महत्त्वपूर्ण लेखों का संग्रह है। इस कारण इसमें विविध विषयों का समावेश है। इस एक ही पुस्तक से पाठक अनेक विषयों के चिन्तन का लाभ उठा सकते हैं ।
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