मैंने डॉ० रामप्रकाश वर्णी द्वारा लिखित ग्रन्थ ‘आचार्य सायण और स्वामी दयानन्द सरस्वती की वेदभाष्यभूमिकाएँ’ नामक ग्रन्थ का आद्योपान्त अवलोकन किया है। यह ग्रन्थ अपने रचनाशिल्प और भावपेशलता की दृष्टि से सर्वथा उत्तमकोटि का है। इसकी भाषा संस्कृतनिष्ठ सरल हिन्दी है और प्रसादगुणयुक्त शैली भावों की सम्प्रेषणीयता में सर्वात्मना सक्षम है। ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें इदम्प्रथमतया युक्ति और प्रमाणों का प्रचुरता के साथ यथोचित और प्रासङ्गिक सन्निवेश हुआ है।
दो ख्यातनामा वेद भाष्यकारों ‘आचार्य सायण और महर्षि दयानन्द की वेदभाष्य भूमिकाओं’ पर आधृत यह समालोचनात्मक कृति जहाँ मौलिक है वहीं प्रामाणिक भी है। ग्रन्थकार ने प्रस्तुत कृति के माध्यम से जो निष्कर्ष निकाले हैं वे निर्धान्त और सुस्पष्ट हैं। मेरा विश्वास है कि वैदिकवाङ्मय के अध्ययन में अभिरुचि रखने वाले किसी भी अध्येता को यह ग्रन्थ अवश्य ही अपनी ओर आकृष्ट करेगा। विषयप्रतिपादन के सौविध्य को दृष्टिगत करके सुधी लेखक ने इस ग्रन्थ को निम्नलिखित आठ अध्यायों में उपबृंहित किया है- प्रथम अध्याय में ‘आचार्य सायण का व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व’ तथा द्वितीय अध्याय में ‘महर्षि स्वामी दयानन्द का व्यक्तित्व एवं कर्तृत्व’ निरूपित किया गया है। तृतीय अध्याय में आचार्य सायण और महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती की वेदभाष्यभूमिकाओं का परिचय प्रस्तुत किया गया है।
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