भारतीय तथा बाहर के शास्त्रों की सहायता से एक ऐसा संग्रह ग्रन्थ बनाया जाय जो आध्यात्मिक रोगों के रोगियों और उनके परामर्शदाताओं के लिए सुलभ मार्गदर्शक बन सके, इसी भावना से लेखक ने इस ग्रन्थ की रूपरेखा बनाई है। लेखक ने प्रयत्न करके, अपनी समझ के अनुसार आध्यात्मिक रोगों के चिकित्साशास्त्र की जो रूपरेखा बनाई है, वह इस निबन्ध के रूप में प्रस्तुत है।
विचारों को अपने अनुभवों से अनुप्राणित करके चिकित्साशास्त्र के क्रम में बांधने का यत्न किया गया है। लेखक को विश्वास है कि इस रूपरेखा के रूप में भी यह निबन्ध माता-पिता, गुरु और आचार्यों के लिए सहायक सिद्ध होगा।
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