तपो धनं तपो भाग्यं तपः सर्वत्र सिद्धिदम् । अतस्तपस्विनां देवि ! दासत्वमपि दुर्लभम् ॥
भक्त साधक के लिए तपस्या ही धन है। तपस्या ही भाग्य है। तपस्या ही सर्वत्र सिद्धि प्रदान करती है। अतः हे देवि! इस संसार में तपस्वियों का दासत्व प्राप्त करना भी दुर्लभ है।
– अगस्त्यसंहिता, ३.३०
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