पुस्तक का नाम – अग्निहोत्र (एक अध्ययन )
लेखक – डा. धर्मेन्द्र शास्त्री
प्रस्तुत पुस्तक में अग्निहोत्र विषयक अनेक आख्यानो और उपाख्यानो द्वारा इसका सविस्तार विवेचन करने का लघु प्रयास किया गया है | अग्निहोत्र की प्रेरणा समस्त शास्त्रों में उपलब्ध होती है | चारों ही वेदों में अग्निहोत्र महिमा विशेषक मन्त्रो का संकलन कर अर्थ प्रस्तुत किया है | यह भावार्थ वेद मनीषी पंडित सातवेलकर जी द्वारा प्रस्तुत किया गया है |
ज्ञान कर्म का रहस्य मानव जीवन में कितना अधिक है यह रहस्य किसी भी मानव द्वारा अज्ञात छिपा हुआ नही है | इष्ट और आपूर्त्त कर्म इन दोनों पर ही मानो समस्त संसार टिका हुआ है | अग्निहोत्र केवल कर्मकाण्ड परख ही नही है ,अपितु इसकी वैज्ञानिकता भी महान है | इसके द्वारा शारीरिक ,मानसिक ,आध्यात्मिक लाभ भी अनेक है | जिन जिन लोगो ने इसका परीक्षण किया है उनकी यथार्थ अनुभूति को यहा रखने का प्रयास किया है |
पांच महायज्ञो का अनुष्ठान प्रत्येक सदग्रहस्थ के लिए आवश्यक है | इनका यथा सम्भव संक्षेप में विधि विधान सहित वर्णन दिया है |
अंत में स्वस्ति वाचन मन्त्र व्याख्या स्वस्ति का अर्थ अच्छा बनना | इस प्रकरण में पढ़े मन्त्रो के मनन चिन्तन से साधक अपने जीवन को उन्नत करे | सभी ३१ मन्त्रो की सरल सुबोध मनोहारिणी हिंदी एव पद्यानुवाद व्याख्या की गयी है | क्योकि जब तक मन्त्रो का भाव समझ नही आएगा तब तक आनन्द नही आयेगा | इसी दृष्टि से इन मन्त्रो की सविशद व्याख्या प्रस्तुत की गयी है |
शान्तिकरण के जो २८ मन्त्र चारो वेदों से है | दयानन्द जी के इन मन्त्रो का विनियोग इस प्रकरण में किया है | शान्ति का तात्पर्य समता है | साधक स्वस्तिवाचन के मन्त्रो को पढ़ते हुए कह उठता है – “ वाचस्पतिर्बला तेषा तन्वो अद्य दधातु मे “ के अनुसार हमारे चारो और बल की नदियाँ बह रही है | हम अपनी मुर्खता के कारण उनके किनारे में खड़े खड़े न नहाते है और न प्यास बुझाते है | सच्चा उपासक साधक वह है ,जो अपने आपको विशाल व उदार बना कर ,सबको अपने अंदर घेरने का आदर्श बनाता है | यही एकातनता ,एक सूत्रता , सायुज्य ,सम्पति आदि अनेक नामो द्वारा सच्ची शांति का ही वर्णन समझना चाहिए | इसी शांति का उत्पन्न करना शांतिकरण के मन्त्रो का अभीष्ट ध्येय है | केवल पाठ मात्र से संतुष्ट नही हो जाना चाहिए|
उपरोक्त शांति को उत्पन्न करना शांतिकरण के मन्त्रों का अभीष्ट ध्येय है, इसी उद्देश्य से प्रस्तुत पुस्तक की रचना की गयी है।
पुस्तक में :-
दैनिक जीवन में अग्निहोत्र की आवश्यकता
अग्निहोत्र की प्रेरणा
वैदिक यज्ञ संस्कृति
उपनिषदों में अग्निहोत्र माहात्म्य
महाभारत का उपाख्यान
अग्निहोत्र की शास्त्रीय महिमा एवं यजुर्वेद के अग्निहोत्र विषयक मंत्र
अग्निहोत्र महिमा विषयक सामवेद के मंत्र
अग्निहोत्र महिमा विषयक ऋग्वेद के मंत्र
अग्निहोत्र महिमा विषयक अथर्ववेद के मंत्र
इष्ट और आपूर्त कर्म
तीन समिधाएँ ही क्यों डालते है ?
अग्निहोत्र के सांकेतिक लाभ
भौतिक लाभ और अनिहोत्र और अन्नों की उत्पत्ति
अग्निहोत्र और आरोग्यता
महर्षि दयानंद के अग्निहोत्र विषयक विचार
यज्ञ में वेद मन्त्रों से ही आहुति क्यों ?
यज्ञिय- विधि- विधान
आर्य पर्व परिचय
वेदों में यज्ञ का स्वरुप
यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि का प्रयोजन क्या है ?
मंत्रो के प्रारंभ में ओ३म् का उच्चारण क्यों करते है ?
यज्ञ में तीन समिधाओं का तात्पर्य क्या ?
समिधा आठ अंगुल की क्यों ?
ओ३म् अयन्त इध्म आत्मा से पाँच घी की आहुतियाँ क्यों ?
यज्ञ में जल सिंचन का उद्देश्य क्या है ?
यज्ञ में दीपक कहाँ रखें ?
यज्ञ में सामग्री किस प्रकार की प्रयोग करना चाहिए ?
यज्ञ में स्वाहा शब्द के उच्चारण पर ही आहुति क्यों दी जाती है ? मौन आहुति क्यों दी जाती है ?
यज्ञ में पत्नी का स्थान ? आदि अनेक प्रश्नों को उठाकर उनका समुचित उत्तर दिया गया है |
पाठक इस पुस्तक का अध्ययन करे इसे मनन व चिन्तन करे तथा इसका अपने जीवन में लाभ प्राप्त करें |
Reviews
There are no reviews yet.