Vedrishi

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आर्ष ज्योति

Arsha Jyoti

120.00

SKU 37058-HP00-0H Category puneet.trehan

In stock

Subject : Arya samaj
Edition : N/A
Publishing Year : N/A
SKU # : 37058-HP00-0H
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कौन तुझे भजते हैं

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ईळते त्वामवस्यवः कण्वासो वृक्तबर्हिषः । हविष्मन्तो अरंकृतः ॥ ऋ 1/14/5

अर्थ- हे परमेश्वर! (अवस्यवः) अपनी सुरक्षा चाहनेवाले, जिज्ञासु [अव गतौ] (कण्वासः) मेधावी [रण शब्दे] जो तुम्हारी स्तुति करते और कण-कण का ज्ञान अर्जन करते हैं (वृक्तबर्हिषः) जिन्होंने अपने हृदयों के झाड़-झंखाड़ों (वासनाओं) को काटकर तुम्हारे बैठने के लिये अपना हृदय सिंहासन सजाया है। (हविष्मन्तः) जिनका जीवन हवि के समान पवित्र बन गया है, (अरंकृतः) जो यम-नियमों के पालन से सुशोभित हो गये हैं या जिन्होंने संसार के भोगों से अलं=‘बस’ कर लिया है (त्वाम्) तुझे वे जन (ईडते) भजते हैं।

परमात्मा की भक्ति तो अपने-अपने विश्वास के अनुसार बहुत से लोग करते हैं। यहाँ तक कि चोर-लुटेरे भी अपने कार्य की सिद्धि के लिये देवी-देवताओं की मनौती मनाते हैं। गीता में इन सभी भक्तों को चार श्रेणियों में विभक्त किया है

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन। आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभः।।

तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एक भक्तिर्विशिष्यते। गीता 7.16-17।।

दुखों से ग्रस्त, जिज्ञासु=जानने की इच्छा वाले, सांसारिक धनैश्वर्य को चाहने वाले और ज्ञानी, ये चार प्रकार के लोग भगवान् की भक्ति करते हैं जिनमें परमात्मा में अनन्य प्रेम, भक्ति रखने वाला ज्ञानी ही सबसे श्रेष्ठ है।

सर्वप्रथम दुखी लोगों को ही भगवान् का नाम स्मरण होता है ‘दुख में सुमरिन सब करें सुख में करे न कोय’। जब व्यक्ति सभी ओर से अपने आपको संकटों से घिरा हुआ पाता है और उसे कोई दूसरा उपाय नहीं सूझता तब वह भगवान् की शरण में जाता है।

दूसरी श्रेणी के लोग इसलिये भी भगवान् का नाम स्मरण करते हैं कि चलो देखें तो सही कि भगवान् कैसा है और उसकी भक्ति से कुछ लाभ होता है या नहीं।

तीसरी श्रेणी में वे लोग हैं जो सांसारिक धन-सम्पत्ति या अपने कार्य की सफलता, पद-प्राप्ति आदि को ध्यान में रख जप, तप, अनुष्ठान आदि करते हैं। इनका दृष्टिकोण विशुद्ध व्यापारिक होता है।

चतुर्थ श्रेणी में ज्ञानी आते हैं जिन्हें किसी प्रकार के दुख निवारण, जिज्ञासा और सांसारिक वस्तु की इच्छा नहीं है। वे अनन्य भाव से उसके प्रेम और भक्ति में श्रद्धान्वित होकर लगे रहते हैं।

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