Vedrishi

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आर्य समाज तथा इसके नियम

Arya Samaj Tatha Iske Niyam

25.00

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Subject : Arya Samaj Tatha Iske Niyam
Edition : 2022
Publishing Year : 2022
SKU # : 37495-VG00-0H
ISBN : N/A
Packing : Paperback
Pages : 48
Dimensions : N/A
Weight : 100
Binding : Paperback
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इसमें आर्यसमाज के दस नियमों की व्याख्या करके बताया समझाया गया है कि यह है आर्यसमाज। इस व्याख्या की एक और विशेषता है कि प्रत्येक नियम का अगले नियम से क्या सम्बन्ध है यह अत्यन्त अनूठे ढंग से बताया गया है। पिछले शब्द की अगले शब्द से और अगले शब्द की पिछले शब्द से क्या संगति है, इसे अत्यन्त हृदय स्पर्शी शैली से रखने का स्वामी जी ने सफल प्रयास किया है।

 आर्यसमाज के दस नियमों पर समय-समय पर पूज्य पं० चमूपति जी तथा पं० गंगाप्रसाद जी उपाध्याय सरीखे विद्वानों ने अत्यन्त विद्वत्तापूर्ण प्रकाश डाला है। ‘आर्यसमाज’ क्या है विषय पर लिखने वालों ने अपनी पुस्तकों में दस नियमों पर कुछ लिखा तो अवश्य परन्तु आर्यसमाज की उपलब्धियों, देन, सुधार, परोपकार तथा आर्यों द्वारा दिये गये बलिदानों को मुख्यता दी। स्वामी वेदानन्द जी ने दस नियमों को मुख्यता देते हुये आर्यसमाज के इतिहास की झांकियों, उपकार, सुधार, प्रचार तथा उपलब्धियों पर पुस्तिका के अन्त में तीन पृष्ठों में कुछ लिख दिया है। आर्यसमाज के दस नियमों की ऐसी व्याख्या और किसी विद्वान् ने आज पर्यन्त नहीं की। न तो दस नियमों की यह व्याख्या बहुत गूढ़ तथा शुष्क है और न ही सामान्य सी। इस संस्थान के जन्म शताब्दी पर्व पर ऐसे साहित्य का प्रकाशन Masses तथा Classes (जन सामान्य तथा सुपठित वर्ग) दोनों के लिये एक उपयोगी पहल मानी जावेगी। हमने इस पुस्तक का नाम ‘आर्यसमाज तथा उसके नियम’ ऐसा कर दिया है। आर्यसमाज के साहित्य प्रेमी तथा मिशनरी भावना के सब उत्साही समाज सेवी यह जानते हैं कि आर्यसमाज के साहित्य प्रकाशन के इतिहास में विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द को ही स्वामी जी का सर्वाधिक साहित्य प्रकाशित करने का गौरव प्राप्त है।

आर्यसमाज के इस सबसे पुराने प्रकाशन संस्थान को अपने शताब्दी पर्व पर स्वामी वेदानन्द जी की यह अनूठी व मौलिक पुस्तक के प्रकाशन का जो सौभाग्य प्राप्त हो रहा है उसके लिये यह संस्थान सब धर्म प्रेमियों की ओर से बधाई का पात्र है। नये-नये कीर्तिमान स्थापित करना तो इस संस्थान के प्रारब्ध में है, ऐसा हमारा विश्वास है। लगभग 82 वर्ष के पश्चात् देश की लोक भाषा हिन्दी में इसके प्रकाशन का सत्साहस करके संस्थान के संचालक ने एक करणीय कार्य कर दिखाया है। ।

इस पुस्तिका के इस संस्करण की एक विशेषता इसकी महत्त्वपूर्ण सम्पादकीय टिप्पणियों का भी गुणी पाठक मूल्याकंन करेंगे तथा जहाँ स्वामी वेदानन्द जी ने स्त्रियों को आर्यसमाज द्वारा तिरस्कार की बजाय सत्कार सन्मान दिलाने का उल्लेख किया है वहाँ पाद टिप्पणी देते हुये हमने लिखा है विश्व में जब किसी भी देश में नारी को मतदान (Voting) का अधिकार नहीं था तब ऋषि के अमर बलिदान के शीघ्र पश्चात् आर्यसमाज ने माता लाड कुँवर को सर्वसम्मति से आर्यसमाज रेवाड़ी का प्रधान चुनकर एक नया इतिहास रच दिया।

सन् 1883 में महर्षि की स्मृति में जब लाहौर में डी०ए०वी० स्कूल की स्थापना के लिये एक ऐतिहासिक और विराट सभा हुई तो उसमें एक महिला माई भगवती का भी भाषण हुआ था। देश में किसी (Historic) ऐतिहासिक सभा में भाषण देने वाली वह प्रथम भारतीय महिला थी।

ऋषि दयानन्द ही भारत के पहले विचारक, महापुरुष व नेता थे। जिनके जीवन चरित्र में राव तुलाराम व श्याम जी कृष्ण वर्मा जैसे क्रान्तिकारियों का उल्लेख है। ऋषि के पत्र व्यवहार में क्रान्तिकारियों के पत्र तथा क्रान्तिकारियों के नाम ऋषि के पत्र मिलते हैं। यह भी एक अपवाद है।

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