पुस्तक का नाम – आर्यभटीयम्
अनुवादक का नाम – डॉ. सुरकान्त झा
प्रस्तुत ग्रन्थ भारतीय ज्योतिष शास्त्र के सिद्धान्त स्कन्ध के प्रथम ग्रन्थ के रूप में प्रतिष्ठित है। इस ग्रन्थ को विद्वानों ने ज्यौतिषशास्त्र के आर्यपक्षीय ‘आर्यसिद्धान्त’ के रूप में स्वीकार किया है। इस आर्यभट ग्रन्थ के दशगीतिका, गणित, कालक्रिया और गोलपाद मिलाकर कुल चार पाद हैं। इस ग्रन्थ की अन्यतम विशेषता ही है कि अब तक इस ग्रन्थ की अनेक टीकायें लिखी जा चुकी है। इस ग्रन्थ के रचेयता आर्यभट है जिनकी भारतीयेतर विद्वानों ने भी प्रशंसा की है।
इस ग्रन्थ के दो भाग है। प्रथम में गीति छन्द के 10 पद्य हैं। अन्य सिद्धान्तों के मध्यमाधिकार में बतलायी जाने वाली प्रायः सभी बातें अर्थात् ग्रहभगणसंख्या इत्यादि मान इस 10 पद्यों में पठित है। इस भाग को दशगीतिका कहते है।
द्वितीय भाग के तीन प्रकरण है, इनमें अन्य सिद्धान्तों के अन्यान्य विषय हैं।
उनमें आर्या छन्द के 108 पद्य है।
अपनी रचनाओं द्वारा आर्यभट ने खगोल और ज्योतिष विद्या में निम्न योगदान दिये थे –
- आर्यभट ने पृथिवी की परिधि का सबसे शुद्धतम मान ज्ञात किया था।
- आर्यभट ने सूर्य से ग्रहों की दूरी की गणना की जो कि वर्तमान मानों के अत्यन्त निकट है।
- आर्यभट ने पृथिवी की घूर्णन गति के आधार पर बताया था कि एक दिन की लंबाई 23 घंटे 56 मिनट और 4.1 सैकण्ड होती है जो कि आधुनिक मान के अत्यन्त निकट है। आर्यभट की तरह ही अन्य यूनानी, ग्रीस और अरबी ज्योतिष्यों ने भी दिन की लंबाई बताई किन्तु वे इतना सटीक आकलंन न कर सके।
- आर्यभट के अनुसार एक वर्ष की लम्बाई 365.25868 होती है जो कि आधुनिक मान के निकट है।
- उन्होने ग्रहणकाल निकालने के सूत्र दिये।
- आर्यभट ने त्रिकोँणमिति के ज्या और कोज्या की खोज की।
आर्यभट की इन्ही अनेकों वैज्ञानिक अवधारणा से प्रभावित होकर भारत सरकार ने प्रथम कृत्रिम भारतीय उपग्रह का नाम आर्यभट रखा था।
यूनेस्कों ने चन्द्रमा की एक बडी़ दरार का नाम आर्यभट रखा है।
इसरो द्वारा समताप मंड़ल पर खोजे गये, एक जीवाणु का नाम बैसिलस आर्यभट रखा गया है।
नैनिताल में एक वैज्ञानिक संस्थान का नाम आर्यभट के नाम पर रखा गया है।
इस तरह आर्यभट की वैज्ञानिक सूझबूझ के आगे आज का वैज्ञानिक और बुद्धिजीवी नतमस्तक है।
उनकी विद्वता के उपयोग के लिए प्रस्तुत ग्रन्थ आर्यभटीयम् का अवश्य ही अध्ययन करना चाहिए।
प्रस्तुत संस्करण में माया नाम से हिन्दी और चिद्धर्षिणी व्याख्या एवं सूर्यदेव यज्वप्रकाशिका के सहित प्रस्तुत की गई है, जो कि चिरकाल से अप्रकाशित थी। यह ग्रन्थ ज्योतिर्विज्ञान विषय के रूप में ज्यौतिषशास्त्र आधुनिक विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के छात्रों के लिए अत्यन्त ही उपयोगी है।
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