इस पुस्तक के सजग पाठकगण। जैसा कि पुस्तक के नाम से ही आप जान गए होंगे कि इसको पढ़ने से हमारा जीवन यानि आदतें बदल जाएँगी। शर्त है, ध्यान पूर्वक पढ़ना। केवल पढ़ना ही नहीं, धारण भी करना होगा। ये सभी के लिए सत्य हैं और सार्वभौमिक यानि यूनिवर्सल हैं। विशेष रूप से अपनी युवापीढ़ी का उद्बोधन करते हुए मैं कहना चाहूंगी कि इन सब को धारण करने के लिए विशेष साहस की आवश्यकता है। क्योंकि अपने स्वाभाविक (नेचुरल) गुणों को बदलना आसान काम नहीं है, इसके लिए विशेष साहस चाहिये।
युवाओ ! आज की परिस्थितियों में जब समाज और राष्ट्र अनेक प्रकार की समस्याओं से घिरा हुआ है। उस घेरे को तोड़ने के लिए प्रबल साहस की आवश्यकता है। यह धर्म और मनुष्यता का वास्तविक लक्षण भी है। हम जिस धर्म को धारण करने के लिए तत्पर हैं उसमें विघ्न बाधाएँ डालने वालों के प्रति भी हमें सावधान रहना ही होगा। कमर कस कर हर पल, हर क्षण सजग बनना है। अपने प्राणों की परवाह न करते हुए मानव धर्म एवं राष्ट्र की सुरक्षा करना अत्यंत आवश्यक है। यदि हम पुनः राष्ट्रीय और मानसिक परतंत्रता में जकड़ गए तो बच पाना मुश्किल है।
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