पुस्तक का नाम – भर्तृहरि दर्शनम्
लेखक का नाम – डॉ. कामदेव झा
भारतीय परम्परा भर्तृहरि को शकारि विक्रमादित्य का अग्रज तथा उज्जयिनी – नरेश स्वीकार करती है जो विरक्त एवं सन्यस्त होने के बाद ही सहृदयोत्तम कवि एवं शब्द शास्त्र ज्ञाता के रूप में प्रतिष्ठित हुए। भर्तृहरि शाश्वत एवं चिरन्तन सुभाषित काव्य के प्रातिभ लेखक हैं और व्याकरणदर्शन का आदिम प्रस्थान स्थापित करने वाले वाक्यपदीयकार, महाभाष्यदीपिकाकार महाव्य्याकरण भी। अनेक चित्र विचित्र रोचक जनश्रुतियों एवं दन्तकथाओं के नायकरूप में भी भर्तृहरि ने अपार ख्याति अर्जित की है जिसका प्रमाण हैं उज्जयिनी चरणाद्रि तथा दियोटसिद्ध बालकनाथ – गुफा में विद्यमान उनके तपः स्थल।
प्रस्तुत ग्रन्थ में ड़ॉ. झा ने कालशक्ति, मोक्षस्वरूप, शब्दब्रह्म – स्वरूप, वर्ण – ध्वनि – स्फोट – शब्द – अर्थ – स्वरूप, श्रुति एवं स्मृति – स्वरूप, साध्वासाधुशब्द – स्वरूप तथा शब्दार्थसम्बन्ध आदि के सन्दर्भ में, स्वतंत्र एवं पृथक् आलेखों के माध्यम से धीर – गम्भीर समीक्षा की है जो नये छात्रों एवं प्रौढ़ विद्वानों को समान रूप से लाभान्वित करेंगी।
मुनित्रयस्य पश्चात् भर्तृहरेः नाम व्याकरणदर्शनस्य क्षेत्रे सादरं गृह्यते। वाक्यपदीयस्य कर्त्ता भर्तृहरिस्तत्र व्याकरणदर्शनस्य नभसि चन्द्र इव प्रकाशते। व्याकरणस्यदर्शनस्य के – के बीजबन्दवः मूलसिद्धान्ताश्च विद्यन्ते, तेषां सर्वेषां कृत्स्नं वर्णनं भर्तृहरिदर्शनग्रन्थेऽवगन्तुं शक्यते। लोके यत्किञ्चित् वस्तु वर्तते, तत् सर्व शब्दानुविद्धमेव। शब्दं विना प्रकाशोऽपि भवत्यक्षमः किल प्रकाशकरणे। वाचः वैविध्यमपि तत्र द्रष्टुं शक्यते। शब्दतत्त्वे विलीयते। यः कोऽपि शब्दयोगी सम्यग् शब्दतत्त्वमवगच्छति। सः निश्चप्रचं शब्दब्रह्माधिगच्छति।
व्याकरणविद्यैव सरलाराजपद्धतिः खलु मोक्षस्य वर्तते। शब्दब्रह्मणः सायुज्यमेव मोक्ष इति। एतत् सर्वं ग्रन्थेऽस्मिन् सविस्तरं वणितमस्तीति।
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