पुस्तक परिचयः- भारतीय दर्शन का इतिहास लेखकः- डॉ. जयदेव वेदालंकार
भारतीय दर्शन के इतिहास का पंचम भाग पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत है। इस भाग में धर्म दर्शन, समाजदर्शन, आयुर्वेद दर्शन, राजनीति दर्शन विज्ञान-दर्शन और शिक्षा-दर्शन, राजनीति दर्शन विज्ञान-दर्शन, और शिक्षा-दर्शन का वर्णन है। यहां यह स्पष्ट करना अपेक्षित है कि भारतीय लेखकों ने अभी तक इन उपर्युक्त विषयों को प्रायः दर्शनशास्त्र के इतिहास के रूप में मान्यता प्रदान नहीं की है। डा. दास गुप्ता ने केवल आयुर्वेदीय दर्शन को भारतीय दर्शनशास्त्र के इतिहास में अंगीकार किया है, अन्य विषयों को भारतीय दर्शनशास्त्र के इतिहास में सम्मिलित नहीं किया है।
धर्म-दर्शन पर भारतीय वाङ्मय में पर्याप्त सामग्री मिलती है। वेद, उपनिषद् ब्राम्हण और सूत्र आदि ग्रन्थों में धर्म की दार्शनिक व्याख्या उपलब्ध है। यद्यपि कालान्तर में धर्म का सामप्रदायिक रूप भी प्राप्त होता है, परन्तु भारतीय वाङमय में धर्म का दार्शनिक रूप पर्याप्त रूप में आख्यायित है। समाज शास्त्र के विषय में प्राचीन भारतीय साहित्य में प्रचुर सामग्री उपलब्ध है। इसी प्रकार आयुर्वेदीय दर्शनों में तो दर्शन-शास्त्र की प्रमाणमीमांसा, तत्वमीमांसा, आचारशास्त्र और मोक्ष आदि दार्शनिक तत्वों का पर्याप्त रूप में उल्लेख हुआ है।
राजनीतिशास्त्र, विज्ञान और शिक्षा के मूल तत्वों के संबंधी वेदों से लेकर मनुस्मृति तक पर्याप्त दार्शनिक सामग्री मिलती है।
इस भारतीय-दर्शनशास्त्र के लेखक का यह विचार है कि ये उपर्युक्त विषय एक पूर्ण विषय के रूप में विधिवत् एवं विकसित रूप में उपलब्ध हैं, इसलिए इनको भारतीय-दर्शनशास्त्र के इतिहास में सम्मिलित किया गया है।
इस ग्रंथ के लेखक डॉ. जयदेव वेदालंकार भारतीय-दर्शन के उद्भट विद्वान के रूप में प्रसिद्ध हैं। यह प्रस्तुत ग्रंथ दर्शन के जिज्ञासुओं, शोध अध्येताओं और विश्वविद्यालयों के प्राध्यापकों के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होगा।
अतः यह ग्रंथ विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों और भारतीय-दर्शनों के शोध-केन्द्रों के पुस्तकालयों के लिए संग्रहणीय है।
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