आर्यसमाजी स्वतंत्रता सेनानी पिता. स्वतंत्रता सेनानी परिवार तथा आर्य सिद्धान्तों से संस्कारित माता की संतान होने का मुझे सौभाग्य मिला। फलतः मुझे संस्कार में ही बचपन से जो शिक्षा और नैतिकता प्राप्त हुई बह आर्यावर्त के गौरवपूर्ण इतिहास के साथ, महर्षि दयानन्द की राष्ट्रीय चेतना भी थी। मद्यपि में एक मेडिकल डॉक्टर बना, परन्तु मेरा अब तक का जीवन आर्यसमाज के संस्कारों में ही फल-फूल रहा है। अनेकानेक आर्य विद्वानों के मुखारविन्दों से तथा उनकी पुस्तकें पढ़कर आर्यावर्त/भारतवर्ष की गरिमा को जाना। माता- पिता की तदनुरूप रुचि, तथा उसको और क्रियान्वित करने के लिए उनके कदमों को देखा इस कारण मैं अपने देश के प्रति स्वाभिमानी रहा और मुझे देश के लिए कुछ करने की प्रेरणा भी मिली। मैंने स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास को पढ़ा खूब मनन-चिन्तन किया। फिर मुझे इस बात का बोध
डॉ. नरेन्द्र कुमार
हुआ कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आर्यसमाज से प्रेरित होकर
आर्यसमाजियों का लगभग 80% योगदान रहा है।
कई वर्षों से मेरी आत्मा (जमीर) मुझे झकझोर रही थी कि आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानन्द सरस्वती को राष्ट्रीय प्रेम की भावना को प्रेरणा से प्रेरित होकर भारत की स्वतंत्रता के लिए जिन आर्यसमाजी नेताओं तथा कार्यकत्र्ताओं ने लड़ाइयाँ लड़ों, सत्याग्रह किया, बेल गए, पुलिस की लाठियाँ सहीं, जो फाँसी के फंदों पर हँसते-हँसते झूल गए और अन्ततः देश के लिए बलिदान हो गए, भारत के इतिहास में
उनका नाम तक नहीं आता, न ही सरकारी स्तर पर कहीं उनकी चर्चा होती है।
एक तरफ आर्यसमाज के 80% जमीनी बलिदानी और दूसरी तरफ केवल 20% ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग की मिलीभगत ! भला विचार तो करें कि आर्यसमाज के बलिदानियों के साथ कितना न्याय हुआ ? भारत के तथाकथित आधुनिक इतिहास की सारी गाथाएँ मोहनदास कर्मचन्द गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मोहम्मद अली जिन्ना जैसे नेताओं के ही इर्द- गिर्द घूमती रही है और वही पढ़ी तथा सुनाई जाती है।
देश पर सर्वस्व लुटाने वाले बलिदानी आर्यसमाजी परिवारों की स्वतंत्र भारत की कांग्रेस सरकार द्वारा उपेक्षा किया जाना तो दुःस्वप्न जैसा ही साबित हुआ। सरल भाषा में कहें कि इन प्रभावित परिवारों के लिए स्वतंत्र भारत की सरकार ने कुछ नहीं किया। यह आर्यसमाजियों के साथ कैसा घोर अन्याय है ?
इतिहास को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करने वाले चन्द इतिहासकारों ने आर्यसमाजियों के बलिदान को भुलाने का जो पाप किया है वह अक्षम्य है। लेकिन आर्यसमाज से जुड़े इतिहासकारों ने अपने प्रयासों द्वारा सच को प्रस्तुत करने का प्रयास भी किया है।
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