ग्रन्थ का नाम – ब्रह्मचर्य – संदेश
लेखक का नाम – सत्यव्रत सिद्धान्तालङ्कार
किसी भी प्रसाद को मजबूती के साथ खड़ा करने के लिए उसकी नीव का मजबूत होना आवश्यक है। मनुष्य जीवन में भी व्यक्तित्व निर्माण और पुरुषार्थ चतुष्ट्य की सिद्धि के लिए चार आश्रमों का विधान वैदिक मनीषियों द्वारा किया गया है। इनमें ब्रह्मचर्य आश्रम को मनुष्य जीवन की नीव कहा जा सकता है क्योंकि इस अवस्था में संयम, अध्ययन, तप का अभ्यास करके उसका शेष जीवन में व्यक्ति पुरुषार्थ सिद्धि में प्रयोग करता है। इस अवस्था में दो मार्गों में से एक मार्ग के चयन का विकल्प होता है, ये दो मार्ग क्षेय मार्ग और पेय मार्ग कहलाते है। इनमें से कौनसे मार्ग का चयन किया जाए, उस मार्ग पर कैसे चला जाए, इन सबके लिए उचित मार्गदर्शन की आवश्यकता होती है तथा उचित मार्गदर्शन मिलने और उसके पालन करने से ब्रह्मचर्य के पालन करने की दिशा प्रशस्त होती है। इसी ब्रह्मचर्यरूपी नीव के पक्के होने पर प्रतिभा की प्राप्ति होती है और व्यक्ति में दिव्यगुणों अर्थात् व्यक्तित्व का विकास होता है। इसके लिए वेद में भी कहा है –
ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्यु मुपाघ्नत ।
इन्द्रो ह ब्रह्मचर्येण देवेभ्यः स्वराभरत ।।
ब्रह्मचर्य और धर्मानुष्ठान से ही विद्वान् लोग जन्म –
मरण को जीत कर मोक्ष सुख को प्राप्त हो जाते हैं जैसे इंद्र अर्थात सूर्य परमेश्वर नियम में स्थित होकर सब लोकों को प्रकाश करने वाला हुआ हैं।
इस मन्त्र से प्रकट होता है कि ब्रह्मचर्य के पालन से ही पुरूषार्थ करने की शक्ति प्राप्त होती है और उसी पुरूषार्थ बल से व्यक्ति संसार में सूर्य के समान प्रकाशित होता है अर्थात् जैसे अनेकों तारों के मध्य चन्द्रमा होता है वैसे ही अनेकों मनुष्यों के मध्य, ब्रह्मचारी प्रकाशित होता है। ब्रह्मचर्य का गायन वैदिक मनीषियों के अतिरिक्त जैन, बुद्ध आदि श्रवणों ने भी किया है। ब्रह्मचर्य की महिमा का जितना गायन किया जावे उतना ही कम है किन्तु एक प्रश्न यह है कि युवाओं को ब्रह्मचर्य विषयक वैज्ञानिक और दार्शनिक शङ्काओं का समाधान कैसे मिलेगा तथा आजकल कई लोग जो संयम पालन को आधारहीन कहते है, उनका प्रतिवाद किस प्रकार होगा? इसी तरह अन्य भी प्रश्न ब्रह्मचर्य विषयक प्रत्येक के जीवन में होते है जिनका उचित वैज्ञानिक और तार्किक उत्तर आसानी से प्राप्त नहीं होता है। इसके लिए एक ऐसे साहित्य की आवश्यकता रहती है जो इन सभी बातों का एकसाथ विश्लेषण प्रस्तुत कर सकें। प्रस्तुत पुस्तक “ब्रह्मचर्य संदेश” इस विषय में सबसे उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण पुस्तक है। इस पुस्तक में लेखक ने गागर में सागर भरने का कार्य करते हुए प्रायः ब्रह्मचर्य सम्बन्धित सभी बिन्दुओं पर विचार प्रस्तुत किया है। वैज्ञानिक ढ़ग से ब्रह्मचर्य पालन के लाभ और इसके अपालन से हानियों को प्रस्तुत किया है। आधुनिक जीव-विज्ञान का बहुत सा अंश इस पुस्तक में लिया गया है, इसी के आधार पर भारतीय मनीषियों के ब्रह्मचर्य सम्बन्धित विचारों की पुष्टि की गई है। भारतीय मनीषियों से पृथक् अन्य देशों के भी विचारकों के ब्रह्मचर्य सम्बन्धित विचारों को पुस्तक में स्थान दिया गया है। अतः प्रत्येक युवा को इस पुस्तक को अत्यन्त मनोभाव से पढ़ना चाहिए तथा अपने आचरण में लाना चाहिए तथा इसका अत्यधिक प्रचार-प्रसार करना चाहिए, जिससे की बालक, युवा सबका अत्यन्त उपकार हो।
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