संसार में आज अनेकों संस्कृतियाँ प्रचलित हैं, उन सभी में भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन है। इस विषय में भारतीय विद्वान् ही नहीं, पावात्य विद्वान् भी एकमत हैं। भारतीय संस्कृति के मूल आधार वेद हैं। इस चराचर जगत् में प्राचीन भारतीय विद्वानों द्वारा श्रुति क्रम से सुरक्षित वेदराशि सबसे प्राचीन है. इसमें कोई सन्देह नहीं है। इसलिए वह बेदराशि कब प्रादुर्भूत हुई, किसने उसे उत्पन्न किया, इस विषय में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। इसलिए भारतीय तो वेदों को अपौरुषेय ही मानकर उनके प्रति अपार श्रद्धा प्रकट करते हैं। भारतीय मान्यता के अनुसार वेदों को न किसी मनुष्य ने रचा है और न वेद ईश्वर द्वारा ही निर्मित हैं। अपितु वेदों के स्मरणकर्ता स्वयं चतुर्मुख ब्रह्मा हैं, जैसा कि पाराशर स्मृति में कहा गया है कि-
न कश्चिद् वेदकर्ता स्याद् वेदस्मर्ता चतुर्मुखः।
वेदो नारायणः साक्षात् स्वयंभूरिति सुश्रुमः ।।
अर्थात् वेदो को स्वयं चतुर्मुख ब्रह्मा ने आकाशवाणी की भाँति श्रवण किया था। जिससे वेदज्ञान की ईश्वर निर्मितता ही सिद्ध होती है।
वेद साहित्य ईश्वर निर्मित है अथवा नहीं तथा ईश्वर निर्मित होना सम्भव भी है अथवा नहीं है, यह कहना तो अशक्य है, परन्तु प्रत्येक धर्मावलम्बी ने अपने-अपने धर्मग्रन्थों को ईश्वर निर्मित अथवा ईश्वर के संदेश माना है। मेरी दृष्टि में जिसका मुख्य कारण अपने-अपने धर्मग्रन्थों के अपरिमित महत्त्व को समाज में स्थापित करने का उद्देश्य है. ताकि समाज उस धर्म के सिद्धान्तों को ईचरीय आदेश मानकर स्वीकार करे और तदनुसार सुचारु रूप से सामाजिक व्यवस्था चल सके। जहाँ तक मेरा विचार है कि सभी धर्मों के नियम सिद्धान्त सामाजिक व्यवस्था को सही रूप से चलाने के लिए ही हैं। जो भी हो, वेदराशि एक अपूर्व और अत्यन्त प्राचीन ज्ञान की महोदधि है।
वस्तुतः भारतीय अध्ययन वेद से ही प्रारम्भ होता है, क्योंकि वेद ही भारतीय संस्कृति के मूल आधार हैं। वेद चार हैं। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। सम्भवतः इन चार वेदों के आधार पर ही ब्रह्माजी को चतुर्मुख के रूप में प्रस्तुत किया गया है। उनके चारो मुख चार वेदों के प्रतीक हैं।
वैसे तो वेद चार ही हैं, परन्तु चारों के उपवेद जो क्रमशः आयुर्वेद, धनुर्वेद, गान्धर्ववेद और अथर्ववेद तथा ब्राह्मण और आरण्यक अन्य एवं उपनिषद् साहित्य भी वैदिक साहित्य के अन्तर्गत ही आता है, परन्तु प्रारम्भ में चारों वेदों का ही स्वान है तथा उन वेदों के ज्ञान के लिए शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष, ये छः शास्त्र हैं।
विश्व साहित्य में वेदों से प्राचीनतर कोई भी साहित्य नहीं उपलब्ध होता है। अतः श्रद्धालु हिन्दू लोग सबसे अधिक वेदों की प्रामाणिकता को ही स्वीकार करते हैं। परन्तु वैदिक साहित्य सर्वजन प्रादा नहीं है। चारों वेदों के अर्थ को समझना सामान्य जन की बुद्धि के परे की बात है, इसीलिए प्राचीन मनीषियों ने स्मृति और पुराणों का प्रणयन किया।
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