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ब्रह्मवैवर्तपुराण

Brahmavaivarta Purana (Set of 2 Volumes)

3,440.00

SKU N/A Category puneet.trehan
Subject : Brahmavaivarta Purana
Edition : 2024
Publishing Year : 2018
SKU # : 37272-CK00-SH
ISBN : 9788121804110
Packing : 2 vol.
Pages : 2410
Dimensions : 25.5 CM X 19 CM
Weight : 3855
Binding : HardCover
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“पुरा परम्परा वहि कामयते” प्राचीनता की परम्परा की कामना करने वाले शास्त्र को पद्मपुराण ने पुराण कहा है। यास्क कहते हैं पुरा नवं भवति’ जो प्राचीन होकर भी नवीन है, वह पुराण है। ब्रह्माण्ड पुराण के अनुसार पुरा एतत् अभूत प्राचीन काल में ऐसा घटित हुआ, यह कहने वाला पुराण है। वायुपुराण ने स्वयं को पुरातन इतिहास कहा है (यामुपुराण १०३/४८-५१)। आचार्य शंकर कहते है कि सृष्टि प्रक्रिया वर्णन पुराण है तथा विभित्र वर्णन इतिहास है। जो आख्यायिका सूचक भाग है. यह इतिहास एवं सृष्टि प्रक्रिया सूचक भाग पुराण है। (छान्दोग्योपनिषद् का शांकर भाष्य)। तथापि आचार्य सायण का मत है कि सृष्टि प्रक्रिया सूचक भाग इतिहास है तथा नाना आख्यायिका आदि भाग पुराण है। कुछ आचार्यगण का अभिमत है कि इतिहास का क्षेत्र सीमित न माने। वह तिथियों तथा लोकव्यवहारात्मक तत्वों को प्रकट करता है। नाना विषय को शिक्षा प्रदान करके मानव में व्याप्त मोहावरण एवं अज्ञान का उच्छेदन करता है-

“इतिहासप्रदीपेन

मोहावरणघातिना।

लोकगर्भगृहं कृत्तनं यथावत् सम्प्रकाशितम्।।

इस सम्बन्ध में अधिक न कह कर इसी संदर्भित श्लोक का अलोकन करने से पुराणों का यथार्थ उद्देश्य विहित हो जाता है। यह पुराण है अथवा इतिहास-इस विवाद में न पड़ कर पुराणों का यथायथ उद्देश्य यही है। हमे पुराणों के संदेश में हो डुबकी लगाना उचित है। नारदीय पुराण में पौराणिक उद्देश्य को और भी प्रकृष्ट रूप से व्यक्त किया गया है-

शृणुवत्स प्रवक्ष्यामि पुराणानां समुच्वयम्। यस्मिन् ज्ञाते भवेज्ञातं वाङ्मयं सचराचरम्।।

-नारदीय, १/९२/२१

सम्प्रति यह ब्रह्मवैवर्त पुराण का भाषानुवाद प्रस्तुत है। यह १८००० श्लोकात्मक तथा चतु खण्डात्मक है। कृष्ण के द्वारा ब्रह्म के विवर्त अर्थात् प्रकटीकरण का वर्णन होने के कारण इसे ब्रह्मवैवर्त नाम दिया गया। दक्षिण भारत में इसका नाम ब्रह्मकैवर्त रखा गया है। इस पुराण को जो अनुक्रमणिका नारद पुराणोक्त हैं, उससे ब्रह्मवैवर्त का प्रस्तुत संस्करण पूर्णतः साम्यमय है। यह कृष्याभक्ति प्रधान है। वैष्णवों में यह अत्यन्त मान्य है। सम्प्रति यह आनन्दाश्रम पूना से पहले छपा था। स्मृतिचंद्रिका तथा हेमाद्रि में इस पुराण के जो उद्धरण मिलते हैं, वे प्रचलित ब्रह्मवैवर्त पुराण से नहीं मिलते। विद्वानों में इस पुराण की स्थिति के सम्बन्ध में मतभेद है। विद्वान् विल्सन ने अपने ग्रन्थ पुराणिक रिकार्ड्स पृष्ठ १६६-१६७ में तो इसे पुराण ही नहीं माना है। कलकत्ता में एशियाटिक सोसाइटी के हस्तलेख सं० ३८२० तथा ३८२१ के अन्तर्गत् “आदि ब्रह्मवैवर्त पुराण उपलब्ध है। यह चतु खण्डात्मक नहीं है। समस्त अन्य एक सूशत्मक है। श्लोक संख्या भी कम है। नारदीय पुराणानुसार यह पुराण १८००० श्लोकात्मक ही है.

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