Vedrishi

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दलितोद्धार की आड़ में

Dalitoddar Ki Aad Men

50.00

SKU N/A Category puneet.trehan
Subject : Dalitoddar Ki Aad Men
Edition : 2020
Publishing Year : 2020
SKU # : 37469-SP03-0H
ISBN : N/A
Packing : Paperback
Pages : 112
Dimensions : 14X22X6
Weight : 129
Binding : Paperback
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प्रिय पाठकवृन्द! मनुष्य की अज्ञानता आदि के कारण शरीर में उत्पन्न रोग की यदि समय पर चिकित्सा न करवाई जाए, तो कालान्तर में वह रोग भयंकर रूप धारण कर लेता है। ऐसे पुराने रोग का उपचार लंबे समय तक लगातार दवाई लेने से ही संभव हो पाता है। यदि कोई रोगी एक-दो दिन दवाई लेकर ही असंतुष्ट होकर इलाज बंद कर दे, तो उसे बुद्धिमान नहीं माना जाता। हिन्दू समाज में व्याप्त छुआछूत की कुप्रथा भी पुराने रोग के समान है। धर्म के ठेकेदारों ने लंबे समय तक इसके भावी परिणामों के बारे में कुछ नहीं सोचा और न इसके विरुद्ध कोई सामूहिक आंदोलन चलाया। गुरुनानक देव, गुरु रविदास, संत कबीर आदि ने कुछ व्यक्तिगत प्रयास किये, पर बाद में उनके शिष्यों के कारण अलग सम्प्रदायों का जन्म हो गया। अंग्रेजों के समय में बंगाल में राजा राममोहन राय व गुरुचंद ठाकुर ने तथा महाराष्ट्र में ज्योति बा फुले ने कुछ प्रयास किया। इसी काल में स्वामी दयानन्द ने देश के विभिन्न भागों में आर्य समाज की स्थापना कर छुआछूत, अंधविश्वास आदि के विरुद्ध विस्तृत आंदोलन चलाया। बहुत से राजा-रजवाड़े इसमें सम्मिलित हुए। >

बड़ौदा के आर्यनरेश सयाजीराव गायकवाड़ ने तो छह राजनियम बनाकर जड़पूजा, अंधविश्वासों, जातिवाद व अस्पृश्यता से युद्ध छेड़ दिया था। वे आर्य संन्यासी स्वामी नित्यानन्द के उपदेशों से प्रभावित होकर वैदिक धर्मी बने थे। 1908 ई. में उन्होंने वैदिक विद्वान् मास्टर आत्माराम अमृतसरी को बड़ौदा बुलवाया और उनके नेतृत्व में दलितोद्वार के लिए लगभग 400 पाठशालाएँ स्थापित करवाई, जिनमें 20000 दलित बच्चों को पढ़ाया था। डॉ. अम्बेडकर को छात्रवृत्ति बडौदा नरेश ने ही दी थी। जब डॉ. अम्बेडकर शिक्षा के लिए लिया नरेश का 20000 रु. का ऋण नहीं चुका सके, तो मास्टर

आत्माराम जी ने महाराज से निवेदन कर (1924 ई.) उसे रद्द करवाया था। इसी तरह आर्य राजा कोल्हापुर नरेश शाहू जी ने डॉ. अम्बेडकर को हर प्रकार की सहायता देकर आगे बढ़ाया था।

दलितोद्धार के लिए समर्पित महान स्वतंत्रता सेनानी, हाथरस (अलीगढ़) की जाट रियासत के आर्य राजा महेन्द्र प्रताप अपने जीवन के प्रारंभिक दिनों में देशभर की यात्रा करते हुए जब द्वारिका के तीर्थस्थल में पहुँचे, तो मन्दिर के पुजारी ने उनसे उनकी जाति पूछी। उन्होंने कहा- भंगी।’ तब पुजारी तथा अन्य लोग बोले-‘फिर तुम मन्दिर में प्रवेश नहीं पा सकते।’ इस जानकारी के बाद कि राजा साहब उक्त जाति के नहीं हैं, मन्दिर के प्रमुख व्यवस्थापक और स्थानीय गवर्नर ने उनसे क्षमा याचना की। लेकिन राजा साहब टस से मस नहीं हुए और बोले-“मैं ऐसे भगवान का दर्शन करना नहीं चाहता, जो जन्म के कारण इन्सान का अपमान करता हो।”

स्वामी श्रद्धानन्द ने दलितोद्धार को जन आंदोलन बनाकर इसे कांग्रेस को अपना विषय बनाने के लिए मजबूर किया था। महात्मा मुंशीराम के रूप में उन्होंने 1913 ई. में दलितोद्धार सभा का गठन कर हिन्दू जनता से दलितों के प्रति उदारता का व्यवहार करने की अपील की थी। अमृतसर के कांग्रेस अधिवेशन (27 दिसम्बर 1919) में उन्होंने इस विषय को मुख्यतः उठाया। इसी विषय को लेकर स्वामी जी कांग्रेस के कलकत्ता व नागपुर अधिवेशन (1920 ई.) में भी सम्मिलित हुए व दलितोद्धार का कार्यक्रम प्रस्तुत किया, पर कोई परिणाम नहीं निकला।

अगस्त 1921 में स्वामी जी ने दिल्ली के हिन्दुओं को प्रेरित किया कि वे दलित वर्ग के लोगों को अपने कुओं से पानी भरने दें, पर मुसलमान कांग्रेसियों ने इसमें बाधा डालने का प्रयास किया। (कांग्रेस के मुस्लिम नेता मौलाना मोहम्मद अली ने लगभग सात करोड़ दलितों को हिन्दू-मुस्लिम में आधे-आधे बाँटने की बात भी कही थी।) इससे क्षुब्ध होकर स्वामी जी ने 9 सितंबर को गाँधी जी को पत्र में लिखा-“मैं नहीं समझता कि इन तथाकथित अछूत भाइयों के सहयोग के बिना जो स्वराज्य हमें मिलेगा, वह भारत राष्ट्र के लिए किसी भी प्रकार हितकारी होगा।”

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