पुराण हमारी संस्कृति के चटख रंगों को आत्मस्य किए हैं। पुराणों का महत्व उनके लिखित रूप से ही नहीं, बल्कि उनके कण्ठकोश पर विद्यमान होने से भी है। कण्ठकोश पर होने में आशय है कि से चिर-स्मृतियों के स्थापी अंश हैं। उनका रूप उनकी प्राचीनता में है। ब्रह्माण्डपुराण ने स्वीकारा है कि प्राचीनकाल में जो हुआ, वह पुराण है: यस्मात्पुरा प्रभूचैतत्पुराणं तेन तत्स्मृतम्। (ब्रह्माण्ड 1, 1, 173 एवं यस्मात्पुरा हानतीदं पुराणं तेन स्मृतम्॥ वायु 1, 203) पुराणकार यह भी कहता है पुराणों का ज्ञान होना अति आवश्यक है। अंगों समेत उपनिषदों के साथ जो वेदों का जानकार है, यह तब तक विचक्षण नहीं हो सकता जब तक कि उसे पुराण वांगमय का बोध न हो। अल्वेद में पुराने के अर्थ में हो पुराण शब्द लगभग चौदह प्रयोग में लाया गया है किन्तु परवर्तीकाल में यह प्राचीन गाथा या कथानक के सन्दर्भ में रूढ़ होता चला गया था। यह स्वीकारा गया है कि इतिहास-पुराण से वेदों को आत्मस्य किया जाना अपेक्षित है। यह उक्ति अनुभव को पराकाष्ठा को सूचक है क्योंकि पुराण से हो प्राचीन परम्पराओं को जाना जा सकता है। पुराण अने संक्षिप्त रूप में संस्कृति के कौतुको कोरा हैं। भव्यतम भाण्डागार हैं और सुविचारित संचित सम्पदा स्वरूप हैं।
पुराणों में गरुडपुराण का महत्व भारतीय समाज में अनेक कारणों से हैं। गारुडीविद्या की भी हमारे यहाँ परम्परा रही है जिसमें आस्तिक मुनि और सर्पभय के निवारण के मंत्र-तन्त्र के प्रयोग होते है। इस पुराण में इस विद्या का संकेत अवश्य है मगर यह पुरानगत पंच लक्षणात्मक ग्रन्थ है। यह पुराण भारतीयों को श्रवण परम्परा में रहा है। इसके अंशों का वाचन समाज को सुशिक्षित करता है। इहलोक में चरित्र निर्माण के पथ पर अग्रसर करता है और परलोक की स्थितियों-परिस्थितियों को परिभाषित करते हुए विचारों का परिमार्जन करता है। इसका महत्व इसकी महत्वपूर्ण सामग्री के कारण भी है जो न केवल धर्म, काम और मोक्ष की बुनियाद पर संजोयी गई है बल्कि अर्थ के आधार पर भी अत्यधिक सुदृढ़ की गई है। इसी कारण हरप्रसाद शास्त्री ने अपने एक वर्गीकरण में अग्रि और बृहजारदीय पुराणों की तरह हो गरुडपुराण को प्रथम श्रेणी में रखते हुए सिद्ध किया है कि इनमें पौराणिक सामान्य विषयों के अतिरिक मानव समाज की समस्त उपयोगी विद्याओं, आध्यात्मिक एवं भौतिक अनुशासनों यथा- व्याकरण, छन्द, अलङ्कार, ज्योतिष, संगीत, आयुर्वेद आदि का सार अंश इन पुराणों में एकत्र कर दिया है। वर्तमानकालीन विश्वकोष के समान इन पुराणों का संग्रहात्मक वैशिष्टय है। प्रो. पाण्डुरंग वामन काण ने इसी कारण अग्नि, नारदीय के साथ-साथ गरुडपुराण को ज्ञानकोशीय पुराणों के रूप में स्वीकारा है।
महापुराणों में गरुडपुराण :
गरुड़पुराण को आठवें महापुराणों की मान्यता प्राप्त है। आठ पुराणों के नाम हैं- 1. ब्रह्मपुराण, 2. पद्मपुराण, 3. विष्णुपुराण, 4. सावपुराण, 5. भागवतपुराण, 6. नारदपुराण, 7. मार्कण्डेयपुराण, 8. अग्निपुराण, 9. भविष्यपुराण, 10. ब्रह्मवैवर्तपुराण, 11. लिंगपुयण, 12. वधपुराण 13 स्कंदपुराण, 14. वामनपुराण, 15. कूर्मपुराण, 16. मत्स्यपुराण, 17. गरुड़पुराण और 18. ब्रह्माण्डपुराण। (विष्णुपुराण 3, 6, 20-24, नारदपुराण पूर्वखण्ड, 92-109, मत्स्यपुराण अ. 53, अग्निपुराण अ. 272, भागवत 12, 13, 3-8)
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