प्रस्तुत इन गीतों में मानवीय मूल्य हमें अनमोल सन्देश दे रहे हैं। मनुष्य को आवश्यक है कि चुन-चुन कर अपने दोषों को त्यागता जाये और संकल्पपूर्वक एक-एक सद्गुण को धारण करता जाये। यदि गीतों में मानवीय मूल्य न हो तो वह व्यर्थ है।
यहां किसी अनाम कवि की पक्तिया ध्यान देने योग्य है चाहे जितना रूप भरा हो. गन्ध नहीं तो सुमन व्यर्थ है। चाहे जीवन पर मिलना हो, स्नेह नहीं तो मिलना व्यर्थ है। उमड़ पड़ा न दर्द देख जो, सुन्दरतम् वह नयन व्यर्थ है। छू न सका जो हदय किसी का, उस रचना का सृजन व्यर्थ है। कभी न जिसे स्वीकारा, उसके सम्मुख नमन व्यर्थ है। डाली डाली जहां न पुष्पित, उसको कहना चमन व्यर्थ है।
प्रस्तुत पुस्तक में ऐसे भजन है जो प्रभात फेरी या सभा-समारोहों में अकेले अथवा सामूहिक रूप से गाये जा सकते हैं। इन्हें लोकप्रिय धुनों पर भी गाया जा सकता है। इसके पहले भाग में भगवद्-भक्ति के गीत हैं, जिन्हें छात्र-छात्राएँ. स्त्री पुरुष, पारिवारिक या सामाजिक सत्संग में गा सके। दिव्य दयानन्द की महिमा के कुछ गाने अलग से सम्मिलित किये गए है। राष्ट्रीय गीतों को भी समुचित स्थान दिया गया है। हास्य-व्यंग के कुछ ऐसे मजेदार गीत भी इस संकलन में है, जो मनोरंजन भी करेंगे और उत्प्रेरक भी सिद्ध होंगे।
अन्त में जागरण का बोध देने वाले गीतों को रखा गया है। वैदिक विचारधारा के प्रचार में इन गीतों को सारे विश्व में गाया सुनाया जाये, इस आग्रह के साथ यह गीत भण्डार’ आपके हाथों में सौंपा जा रहा है।
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