पुस्तक का नाम – ईश्वरीय ज्ञान – वेद
लेखक का नाम – प्रो. बालकृष्ण एम. ए.
मानव को दो प्रकार के ज्ञान की आवश्यकता होती है, वह है – स्वाभाविक ज्ञान और नैमित्तिक ज्ञान।
इनमें मनुष्य को अपने जीवन निर्वाह, आविष्कार और भाषा सम्प्रसारण के लिए नैमित्तिक ज्ञान का होना आवश्यक है बिना नैमित्तिक ज्ञान के मनुष्य अनेकों व्यवहार सृष्टि में नहीं कर सकता है जैसे कि जल में तैर नहीं सकता है, किसी से बात नहीं कर सकता है और सृष्टि के पदार्थों का उपयोग नहीं कर सकता है। यह नैमित्तिक ज्ञान उसे उसके माता-पिता के द्वारा, गुरू के द्वारा प्राप्त होता है, इसी तरह उसके माता-पिता और गुरू को उनकें माता-पिता और गुरूओं के द्वारा प्राप्त होता है, यह क्रम सतत् रूप से चला आ रहा है किन्तु प्रश्न उठता है कि आरम्भिक मनुष्य अर्थात् आदिमानव को यह ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ? जो आज तक भी चला आ रहा है। उस आदिमानव के कोई माता-पिता नहीं थे फिर उसके नैमित्तिक ज्ञान का माध्यम क्या है? इस समस्या के समाधान के दो हल दिये जाते हैं, वे क्रमशः यह है –
- मनुष्य पशु, पक्षी आदि से स्वतः सीख-सीख कर धीरे-धीरे सभ्यता की ओर विकसित हुआ।
- प्रारम्भिक ज्ञान मनुष्य को ईश्वरीय सत्ता से प्राप्त हुआ और फिर पारिवारिक वंश परम्परा से आगे को बढ़ा।
इनमें से प्रथम मत विकासवाद का है और दूसरा मत विभिन्न दार्शनिकों और भारतीय मुनियों का है।
इन दोनों मतों में से प्रथम मत की असफलता के अनेकों उदाहरण इतिहास में किये गए प्रयोगों से देखते है –
ये प्रयोग असीरिया के सम्राट असुर बेनीपाल, यूनान के सम्राट फ्रेडरिक द्वितीय, स्काटलैंड के शासक जेम्स चतुर्थ तथा मुगल सम्राट अकबर ने अनेक प्रयोग किये। किसी ने इन बालकों को गूंगे मनुष्यों के पास रखा, किसी ने कुछ पक्षियों के पास रखा तो किसी ने पशुओं के पास रखा। इन सबका परिणाम यह निकला की ये सब बालक किसी भी तरह से मानवीय भाषा या कोई भी मानवीय व्यवहार न सीख सकें बल्कि जिसके साथ इन्हें रखा गया उसी जैसा व्यवहार सीख गए। इससे निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य स्वयं या किसी भी विकासक्रम में भाषा, सभ्यता और मानवीय व्यवहार स्वतः नहीं सीख सकता है।
इस सम्बन्ध में प्राचीनकाल में ही नहीं अपितु आज भी अनेकों प्रयोग हुए है जैसे –
डिस्कवरी चैनल ने दिनाँक 21.6.2003 समय रात्रि 9.50 पर एक दृश्य प्रसारित किया था। जिसके अनुसार मिदनापुर अनाथालय के संचालक पादरी को 1920 ई. में जंगल से दो लड़कियाँ हिंसक पशुओं के संरक्षण में मिली जो कि मानवीय व्यवहारों से पूर्णतः शून्य थी और पशुवत् व्यवहार करती थी। ये दोनों मानवीय व्यवहार सीखने से पहले ही काल का ग्रास बन गई।
एक अन्य घटना टाइम्स ऑफ इंडिया में दिनाँक 12 जुलाई सोमवार, 2004 नई दिल्ली में प्रकाशित हुई। इस समाचार पत्र के अनुसार फिजी में मुर्गीखाने से बच्चा प्राप्त होने की घटना का प्रकाशन हुआ। जिसके अनुसार मुर्गियों के मध्य पलने वाले बालक का व्यवहार मानवीय व्यवहार से रहित मुर्गियों जैसा हो गया।
इन उदाहरणों से निष्कर्ष निकलता है कि मनुष्य स्वतः नैमित्तिक ज्ञान नहीं प्राप्त कर सकता है उसे इसके लिए किसी न किसी माध्यम की आवश्यकता होती है और सृष्टि के आरम्भ में मनुष्य को यह ज्ञान ईश्वर से प्राप्त हुआ, क्योंकि ईश्वर ही उस समय सर्वज्ञानी और ज्ञान स्लरूप होने से ज्ञान देने में समर्थ था। इस विषय में महर्षि पतञ्जलि योग दर्शन में लिखते है – “स एषः पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्” अर्थात् ईश्वर ही पूर्वजों, ऋषियों, महर्षियों का भी गुरू है।
महर्षि दयानन्द गुरु शब्द की व्याख्या करते हुए लिखते हैं – “(गृ शब्दे) इस धातु से गुरु शब्द बना है। ‘यो धर्म्यान् शब्दान् गृणात्युपदिशति स गुरुः’। ‘स पूर्वे…..छेदात्’ (यो.द.) जो सत्यधर्म प्रतिपादक, सकल विद्यायुक्त वेदों का उपदेश करता है, जो सृष्टि की आदि में अग्नि, वायु, आदित्य, अङ्गिरा और ब्रह्मादि गुरुओं का भी गुरु है।” – सत्यार्थ प्रकाश समु. 1
अतः सर्गारम्भ में मनुष्य को ईश्वर द्वारा ही ज्ञान की प्राप्ति हुई।
इससे हमें यह तो ज्ञात हो जाता है कि मनुष्य को ईश्वरीय ज्ञान आवश्यक है और उसी के माध्यम से मनुष्य आजतक अपनी उन्नति करता आ रहा है किन्तु यहां प्रश्न शेष है कि ईश्वरीय ज्ञान कौनसा है अथवा किसे ईश्वरीय ज्ञान कहा जावें? इस सम्बन्ध में विभिन्न मत वाले अपनी-अपनी पुस्तक को ईश्वरीय बतलाते हैं जैसे पारसी जेन्दावस्था को, ईसाई बाईबिल को और मुस्लिम कुरआन को और वैदिक या सनातनी वेदों को ईश्वरीय बताते है। इन ग्रन्थों में से कौनसा ग्रन्थ ईश्वरीय है, इसकी निम्न कसौटियां है –
1 ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव के अनुकूल हों – ईश्वर में सर्वकल्याण, ज्ञान और सत्य आदि अनेकों गुण है, इन्हीं गुण के अनुकूल ईश्वर का ज्ञान होना चाहिए। जब कुरआन, बाईबिल आदि ग्रन्थों को देखा जाता है तो इनमें कई बाते पक्षपातयुक्त, विरोधाभासयुक्त और अल्पज्ञान युक्त मिलती है किन्तु वेदों में इनका लेश मात्र भी उल्लेख नहीं है। इस सम्बन्ध में सम्पूर्ण उदाहरण आप प्रस्तुत पुस्तक में प्राप्त करेगें। यहां एक छोटा सा उदाहरण देते हैं – ईश्वर को गुणाधारित नाम के आधार पर सच्चिदानन्द कहते है जिसका अर्थ है – सत् अर्थात् सत्तावान, चित् अर्थात् ज्ञान स्वरुप और आनन्द अर्थात् आनन्द स्वरुप, ये तीनों ईश्वर के स्वभाव वेद शब्द में दृष्टिगोचर होते है –
वेद शब्द निम्न शब्दों से बनता है जैसे – “विद् सत्तायाम्” अर्थात् जो सदा से या नित्य हो।
“ विद् ज्ञाने और विद् विचारे” अर्थात् जो ज्ञान और विचार युक्त हो।
“विद् लाभे” अर्थात् जिससे मोक्ष, सुख आदि लाभों की प्राप्ति हो। ये वेद का नामकरण ही ईश्वरीय स्वभाव के अनुकूल है ऐसा नाम कुरआन, बाईबिल आदि ग्रन्थों का नहीं है जो इस तरह व्याख्या करने पर ईश्वर के स्वभाव के अनुकूल हो।
2 सृष्टिक्रम के अनुकूल हो – अन्य ईश्वरीय कहलाने वाले ग्रन्थों में आप सृष्टि नियम प्रतिकूल अनेकों बाते देख सकते है जैसे कि आकाश का फटना, आकाश में स्तम्भ होना इत्यादि किन्तु वेद ईश्वरीय ज्ञान होने से सृष्टि नियमों और वैज्ञानिक तथ्यों का आश्चर्यजनक रूप से वर्णन करता है। इस पर इसरो के पूर्व चीफ माधवन नायर ने निम्न विचार दिये है –
नई दिल्ली की वेद विज्ञान की एक गोष्टी में माधव नायर जी का कहना है कि वेदों में कहा है कि चन्द्रमा पर जल है किन्तु इस बात पर किसी ने विश्वास नहीं किया लेकिन जब भारत ने चन्द्रयान मिशन किया तो वेदों का कथन सत्य निकला।
उनके इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि वेद सृष्टि विद्या का भी वर्णन करते है उनमें विज्ञान के अनेकों संकेत मूलरुप में विद्यमान है जो कि अन्य मतों के ईश्वरीय ग्रन्थों में नहीं है।
3 वह ज्ञान देशकाल की सीमाओं में आबद्ध न होकर मनुष्य मात्र के लिए एक समान उपयोगी हो – जब हम कुरआन, बाईबिल आदि को देखते है तो इसमें एक स्थान विशेष और वहां के धरातल, वातावरण का वर्णन होता है किन्तु वेदों में किसी धरातल, स्थान विशेष और व्यक्ति विशेष का वर्णन नहीं है।
4 मनुष्य मात्र उसका अधिकारी हो – कुरआन का उपदेश मुख्यतः मुस्लिम के लिए है, बाईबिल का इसाई के लिए अथवा ये पुस्तके मुस्लिम, ईसाई बनाने का उपदेश करती है जबकि वेदों का उपदेश जगत के प्रत्येक मनुष्य के लिए है तथा वेद सभी को मनुष्य बनने के लिए कहता है।
5 किसी भी व्यक्ति और इतिहास का वर्णन न हो – कुरआन, बाईबिल, जेन्दावस्था किसी व्यक्ति विशेष के इर्द-गिर्द ही घुमती है जैसे कि कुरआन मुहम्मद साहब के उसमें आयत भी उनकी परिस्थितयों अनुसार है। बाईबिल ईसामसीह और इजराईल के लोगों पर तथा जिन्दावस्था जोराष्ट्र और पारसियों के व्यवहारों का वर्णन करती है। इनमें मनुष्यों का इतिहास वर्णित है किन्तु वेदों में कोई भी अनित्य इतिहास वर्णित नहीं है।
इन आधारों पर वेद ही ईश्वरीय ग्रन्थ सिद्ध होते है। इस विषय में विस्तृत वर्णन प्रस्तुत पुस्तक “ईश्वरीय ज्ञान – वेद” में किया गया है।
यह पुस्तक वैदिक सम्पत्ति नामक पुस्तक से 15 वर्ष पूर्व प्रकाशित हो चुकी थी। इस पुस्तक में लेखक ने अनेकों प्रमाणों और युक्तियों से वेदों को ईश्वरीय ग्रन्थ सिद्ध किया है।
इस पुस्तक की विषय वस्तु निम्न प्रकार है –
प्रथम भाग – इसमें ईश्वरीय ज्ञान की आवश्यकता और ईश्वरीय ज्ञान की परीक्षाओं का वर्णन किया है। वेदों में अनित्य इतिहास का अभाव, वैदिक ऋषि कौन थे?, वेद और यूरोपियन आदि विषयों पर लेख प्रस्तुत किये गये हैं।
द्वितीय भाग – इसमें विभिन्न शास्त्रीय प्रमाणों जैसे कि वेदों के, ब्राह्मण ग्रन्थों के, उपनिषदों के, दर्शन और स्मृतियों आदि के प्रमाणों के द्वारा वेदों को ईश्वरीय ज्ञान सिद्ध किया है।
आशा है कि वेदभक्त आर्यजनता इस ग्रन्थ के अध्ययन से अवश्य ही लाभान्वित होगी।
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