Vedrishi

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कात्यायन श्रौत सूत्र

Katyayan Shraut Sutra

3,200.00

SKU 36483-VG00-0H Category puneet.trehan

In stock

Subject : Karma Kaand
Edition : 2011
Publishing Year : N/A
SKU # : 36483-VG00-0H
ISBN : 9788189469375
Packing : 3 Volume
Pages : 1687
Dimensions : 9.0 INCH X 6.0 INCH
Weight : 2162
Binding : HARDCOVER
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ग्रन्थ का नाम कात्यायन श्रौतसूत्र

अनुवादक लक्ष्मीश्वर झा

वेदों के 6 अङ्ग प्रसिद्ध है, इनमें कल्प को वेदों का हस्त कहा गया है। कल्पसूत्र वेद मन्त्रों के विनियोगों वा प्रयोग विधि को बतलाता है। कल्पसूत्रों के मुख्यतः तीन भेद है

1 श्रौतसूत्र

2 गृह्यसूत्र

3 धर्मसूत्र

इनमें श्रौतसूत्रों में अग्निहोत्र से अश्वमेध पर्यन्त यज्ञों का वर्णन किया गया है। श्रौत ग्रन्थों के अन्तर्गत हवन, याग, इष्टियाँ आदि सत्र प्रकल्पित किये गये हैं। ऋषियों द्वारा इन पद्धतियों को बनाने का उद्देश्य वेदों में निहित शिक्षाओं और प्रकृति के विज्ञान अर्थात् प्रकृति में हो रहे यज्ञों को विविध क्रियाओं और हवनादि के माध्यम से जनसामान्य में प्रचारित करना था।

ऋषि दयानन्द सरस्वती ने अपने आर्योद्देश्यरत्नमाला, सत्यार्थ प्रकाश तथा वेदभाष्यों में जहां-कहीं यज्ञ का प्रसङ्ग आया है, वहां प्रायः सर्वत्र अग्निहोत्र से लेकर अश्वमेध पर्यन्त शब्दावली का प्रयोग किया है। ये अग्निहोत्र से लेकर अश्वमेध पर्यन्त यज्ञों का वर्णन ब्राह्मण ग्रन्थों और श्रौतसूत्रों में प्राप्त होता है।

ऋषि दयानन्द ने श्रौत प्रक्रिया के आधार पर शाहपुराधीश नाहरसिहं जी को अपनी उपस्थिति में श्रौत अग्नियों का आधान तथा अग्निहोत्र और दर्शपूर्णमास इष्टियों का आरम्भ करवाया था।

इन स्थलों के अतिरिक्त ऋषि दयानन्द ने ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में श्रौतसूत्रों के महत्त्व को स्वीकारते हुए प्रतिज्ञाविषय में लिखा है

इस वेदभाष्य में शब्द और उनकें अर्थ द्वारा कर्मकाण्ड का वर्णन करेंगे परन्तु कर्मकाण्ड में लगाए हुए वेदमन्त्रों से जहां-जहां जो-जो अग्निहोत्र से लेकर अश्वमेध-पर्यन्त कर्म करने चाहिये, उनका वर्णन यहाँ नहीं किया जायेगा। क्योंकि कर्मकाण्ड के अनुष्ठान का ऐतरेय-शतपथब्राह्मण पूर्वमीमांसा और श्रौतसूत्रादि में यथार्थ विनियोग कहा हुआ होने से, तथा उस को फिर कहने से अनृषि के ग्रन्थ के समान पुनरूक्ति और पिष्टपेषण दोष की प्राप्ति होती है।

ऋषि के इस कथन से स्पष्ट है कि वे श्रौतसूत्रों का महत्त्व स्वीकारते थे और इसके पठन-पाठन को भी मानते थे। इनके साथ-साथ ऋषि दयानन्द ने यह भी कहा है कि श्रौतसूत्रों में वेदानुकूल विनियोग ही अनुपालनीय है, वेद प्रतिकूल नहीं। इस अनुसार वेदानुकूल विनियोगों की उपादेयता सिद्ध हो जाती है।

हमारे समक्ष अनेकों श्रौतसूत्र प्राप्त होते है, जिनमें से कात्यायन श्रौतसूत्र अति महत्त्वपूर्ण है, इस ग्रन्थ के उपदेशक महर्षि कात्यायन माने गए है। इस ग्रन्थ में अग्न्याधान, दर्शपौर्णामास, आग्रयणेष्टि, चातुर्मास्य, एकाह, अश्वमेध, सोमयाग, सौत्रामणी, पुरूषमेध आदि यज्ञों का वर्णन है।

प्रस्तुत ग्रन्थ कात्यायन श्रौतसूत्र संस्कृत मूल के साथ-साथ हिन्दी अनुवाद सहित भी है। जिससे हिन्दी भाषाई पाठक भी अत्यन्त लाभान्वित होंगे। प्राचीन वैदिक यज्ञों जिनका वर्णन रामायण, महाभारत में प्राप्त होता है उन राजसूय, अश्वमेधादि यज्ञों की विधि के ज्ञान के लिए और भारत की प्राचीन यज्ञीय परम्पराओं को समझने के लिए प्रस्तुत कात्यायन श्रौतसूत्र का अवश्य ही अध्ययन करें।

आशा है कि इस ग्रन्थ के अध्ययन से पाठक गण यज्ञों के स्वरूप को समझ सकेंगे और उनकी अश्वमेध, सौत्रामणि और सोमयाग के सम्बन्ध में ज्ञान की वृद्धि होगी। साथ ही साथ ये भी ध्यान देना आवश्यक है कि इनमें जो भी हिंसक और वेद के प्रतिकूल विधियाँ है वे प्रक्षिप्त होने से अस्वीकार है।

Weight 2162 g

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