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कौषीतकिगृह्यसूत्रम्

Kaushitaki Grihyasutram

650.00

Subject : Grihyasutram
Edition : 2023
Publishing Year : 2023
SKU # : 36888-PP00-0E
ISBN : 9788170803447
Packing : Hard Cover
Pages : 376
Dimensions : 29cm X 23cm
Weight : 645
Binding : Hard Cover
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गृह्यसूत्र भारतीय संस्कृति के नियामक ग्रन्थ है। भारतीय जीवन को परिष्कृत, नियमित और व्यवस्थित करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्हीं के आधार पर अपना जीवन-यापन करते हुए भारतीय उत्कृष्ट, आंदर्शमय, परिष्कृत और व्यवस्थित जीवन व्यतीत करते थे। पाश्चात्य भी इनका अनुकरण करके अपने जीवन को उसी प्रकार से उत्कृष्ट और शान्त बनाने का प्रयत्न करते थे। इसी कारण भारत को सम्पूर्ण विश्व में जगद्‌गुरु होने की प्रतिष्ठा प्राप्त थी। यद्यपि अधुना भारतीय भी पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हुए हैं। उनके भी जीवन को भौतिकता की आँधी ने धूल-धूसरित किया है, तथापि उनमें विद्यमान अपने पूर्वजों की परम्परा आज भी समाहित है जिसके कारण आज भी भौतिकता से व्यथित विश्वजन जीवन में शान्ति के लिए उनकी ओर दृष्टिपात किये हुए हैं। परिणामतः इनकी जगद्‌गुरुता की प्रतिष्ठा आज भी सुरक्षित है। प्राचीन भारतीय जीवन में यज्ञयागादि का महत्त्वपूर्ण स्थान था और उनका जीवन यज्ञयागादियों से पूर्णतः आप्लावित था जो आज भी अल्पाधिक रूप से भारतीय जीवन का अवलम्ब है। उस संस्कृति के कुछ मूलतत्त्व तो आज भी मूलरूप में विद्यमान है किन्तु कुछ तत्त्व प्रतीकमात्र उपलब्ध होते हैं जिनसे उनका मूलस्वरूप प्रकाशित होता है।

यद्यपि भारतीय संस्कृति के मूल स्रोत वेद हैं। इसके मूलतत्त्व संहिताओं, ब्राह्मणों, आरण्यकों और उपनिषदों में प्राप्त होते हैं, किन्तु वे अव्यवस्थित, अक्रमिक और विस्तृत रूप से निर्दिष्ट किये गये हैं। इनके मूल रूप का प्रत्याख्यान वेदाङ्गों में हुआ है। भारतीय संस्कृति के प्रमुख अङ्ग यज्ञयागादि का क्रमिक, व्यवस्थित और सङ्क्षिप्त विवेचन कल्प नामक नेदाङ्ग में उपलब्ध होता है। वेदाङ्गों में कल्पसाहित्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। यह वेदाङ्ग भी सूत्ररूप में उपनिबद्ध है अतः यह कल्पसूत्र कहलाता है। कल्पसूत्र वह है जिसमें यज्ञयाग के प्रयोग की कल्पना का समर्थन हुआ है। इसके चार भाग हैं- श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र । श्रौतसूत्रों में श्रौताग्नि में होने वाले यज्ञों का तात्त्विक विवेचन किया गया है। पत्नी के साथ गृह्याग्नि में किये जाने वाले कर्मों का विवेचन गृह्यसूत्रों में किया गया है। धर्मसूत्र में मनुष्य के सामाजिक, राजनीतिक इत्यादि से सम्बन्धित कर्त्तव्यों को निर्दिष्ट किया गया है। शुल्बसूत्र में यागादि कार्यों के लिए विभिन्न प्रकार की वेदिनिर्माण-विधि और विभिन्न प्रकार से उनके परिमापन का वर्णन हुआ है, जो

ज्यामितिशास्त्र का मूल उत्स है।

Dimensions 2923 cm

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