पुस्तक का नाम – कौटिल्य अर्थशास्त्र
लेखक – उदयवीर शास्त्री जी
आचार्य कौटिल्य के बारे में मुद्राराक्षस में आता हैं कि एक बार सिंकन्दर का दूत कौटिल्य के घर गया जो कि कच्चा, टूटा-फूटा सा था वहाँ पास में कुछ ब्रह्मचारी अध्ययन कर रहें थे तथा उसकी घास फूस की कुटियाँ पर कुछ यज्ञ की समिधाऐं सूख रही थी। जिनकें वजन से कुटियाँ की छत नीचें को झुकी थी। चाणक्य की इस स्थिति को देख दूत ने पूछा कि आप इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री हो कर इस तरह कंगाल रहते हों? इस पर चाणक्य ने कहा कि जिस देश का प्रधानमंत्री कंगाल हो वो देश समृद्ध होता हैं और जिस देश का प्रधानमंत्री समृद्ध हो वो देश कंगाल होता हैं। आचार्य चाणक्य के इस वचन से स्पष्ट हैं कि वे देश और समाज हित में काफी विचार करते थे। उनके लिखे ग्रन्थ भी देश और समाज हित में ही हैं।
प्रस्तुत ग्रन्थ आचार्य कौटिल्य के “अर्थशास्त्र” का हिंदी अनुवाद हैं। इसमें पद्यानुक्रमणिका और चाणक्य प्रणीत सूत्र, पारिभाषिक शब्दावली सलग्न हैं।
इस अनुवाद की निम्न विशेषताए है –
–अन्य सभी संस्करणों से शुद्धतम हैं।
–भाषानुवाद की दृष्टि से अन्य कौटिल्य के अनुवाद से उत्तम हैं।
–अनुवाद और ग्रन्थ के कई शब्दों के अर्थ को खोलने में प्राचीन टीकाओं के आधार पर लिखी गयी “नयचन्द्रिका” की पर्याप्त सहायता ली गयी हैं।
–महत्वपूर्ण बातों को सटिप्पणी उद्धृत किया हैं।
यह ग्रन्थ सभी के लिए उपयोगी एवं लाभदायक हैं किन्तु अनुसन्धानकर्त्ताओं के लिए विशेष उपयोगी एवं लाभदायक सिद्ध होगा
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