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कूर्मपुराणम्

Kurmapuranam

600.00

By : शिवजीत सिंह
Subject : puran
Edition : 2023
Publishing Year : 2023
Packing : Hard Cover
Pages : 431
Dimensions : 8X25X2
Weight : 1025
Binding : Hard Cover
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देवासुरैः क्षीरसमुद्रमध्यतो न्यस्तो गिरिर्येन घृतः पुरा महान्। हिताय कौमैं वपुरास्थितो यस्तं विष्णुमाद्यं प्रणतोऽस्मि भास्करम् ।।

(श्रीनृसिंहपुराण ५३:१८)

देवताओं और असुरों द्वारा क्षीरसागर का मन्थन करते समय पूर्वकाल में जिन्होंने सबके हित के लिये प्रकाशमान कूर्म रूप से डूबते हुए महान् मन्दराचल (पर्वत) को धारण किया था, उन आदिदेव भगवान् विष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।

पुराणों को भारतीय संस्कृति का विराट् कथात्मक कोश कहा जाय तो अत्युक्ति नहीं होगी, परन्तु इनका आधार वेद ही हैं। वेदों में जिन विषयों को सूत्ररूप में कहा गया।

है, पुराणों में उन्हीं को व्याख्यायित किया गया है। उदाहरण के रूप में यजुर्वेद (५:१५) के ‘इदं विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा नि दधे पदम् । समूढमस्य पासुरे स्वाहा’ मन्त्र में भगवान् * विष्णु के वामन रूप धारण करके तीन पग में सम्पूर्ण पृथ्वी और आकाश को नाप लेने की बात कही गयी है; यह कथा विस्तार से अनेक पुराणों में आयी है। इसी प्रकार तैतिरीय- ब्राह्मण (१:१:३:६) में भगवान् के वराहावतार और पृथ्वी के उद्धार की कथा सूत्ररूप में है- ‘स (प्रजापतिः) वै वराहो रूपं कृत्वा उपन्यमज्जत । स पृथिवीमध आर्च्छत् । तस्या उपहत्योदमज्जत्’ । यह कथा भी अनेक पुराणों में विस्तार के साथ प्राप्त होती है। इसीलिए पुराण और इतिहास को पाँचवें वेद की संज्ञा दी गयी है- इतिहासपुराणाभ्यां पश्चमो वेद उच्यते’ । साथ ही यह भी कहा गया है कि वेद के निगूढ अर्थों को इतिहास और पुराणों के द्वारा समझना चाहिये- ‘इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत् । बृहदारण्यकोपनिषद् (२:४:१०) के अनुसार पुराणों को भी वेदों की ही भाँति ईश्वर का निःश्वास स्वीकार किया गया है-

‘अस्य महतो भूतस्य निश्वसितमेतद् यद् ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणम्’ ।

मत्स्यपुराण तथा ब्रह्माण्डपुराण तो पुराणों को वेदों से भी पूर्व का बताते हैं। उनके अनुसार ब्रह्माजी ने समस्त शासों में सर्वप्रथम पुराणों का स्मरण किया और उसके अनन्तर उनके मुख से वेद प्रकट हुए-

पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्। अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः ।।

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