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कूर्मपुराणम्

Kurmapuranam

600.00

SKU field_64eda13e688c9 Category Rishi Dev
By : शिवजीत सिंह
Subject : puran
Edition : 2023
Publishing Year : 2023
Packing : Hard Cover
Pages : 431
Dimensions : 8X25X2
Weight : 1025
Binding : Hard Cover
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कूर्मपुराण में कहा गया है कि किसी प्रकार भी इसकी कथा सुनने, इसका प्रवचन करने अथवा पाठ पढ़ने से मनुष्य धन्य (धनवान), यशस्वी तथा पुण्य का भागी हो जाता है और मृत्यु के अनन्तर मोक्ष को प्राप्त

करता है-

धन्यं यशस्यमायुष्यं पुण्यं मोक्षप्रदं नृणाम्।

पुराणश्रवणं विप्राः कथञ्चन विशिष्टः॥

कूर्मपुराण को अष्टादश पुराणों में पन्द्रहवें पुराण रूप में गिनाया गया है। यह कहा गया है कि इस कूर्मपुराण का सम्पूर्ण स्वरूप चार संहिताओं के रूप में स्थित था जो क्रमशः ब्राह्मी, भागवती, सौरी तथा वैष्णवी संज्ञक थी। वर्तमान समय में मात्र छः हजार श्लोकों वाला जो कूर्मपुराण उपलब्ध है उसको ब्राह्मी संहिता कहा गया है, जो कि चारों वेदों के समान महत्त्व वाला है

इस कूर्मपुराण का प्रथम बार प्रकाशन वैङ्कटेश्वर प्रेस बम्बई से हुआ था। तदनन्तर मनसुख राय मोर ५ क्लाइव रो कलकत्ता से इसका प्रकाशन हुआ था। इस पुराण का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन सर्वभारतीय काशिराज न्यास, दुर्ग, रामनगर, वाराणसी से हुआ था। तदनन्तर इसका हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी से तथा हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से भी इस पुराण का हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशन हुआ था। गीताप्रेस गोरखपुर से भी कल्याण के विशेषांक (जनवरी

१९९७) में इस पुराण को हिन्दी अनुवाद सहित प्रकाशित किया गया है।

चौखम्बा संस्कृत सीरीज ऑफिस द्वारा प्रकाशित इस संस्करण में मूल-पाठ की शुद्धि पर विशेष ध्यान दिया गया है। इस संस्करण में अनेकत्र अनर्गल पाठ को संशोधित करके उसी संशोधित पाठ के अनुकूल हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है (द्रष्टव्य- कूर्म पू०२९/३९; पू०५१/२२; उ०१५/१२)। अनेकत्र मूल पाठ में अपेक्षित शब्दों का संयोजन करके (भ्रष्ट पाठ को) टिप्पणी में दिया गया है (द्रष्टव्य-कूर्म पू०२२/५५; पू०२४/११-१३; पू०५२/९; उ०२/४०)। इसके अतिरिक्त पाठकों की जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए अनेकत्र पाद-टिप्पणियों में भी प्रमाण उद्धृत किये गये हैं। (द्रष्टव्य- कूर्म पू०२१/५९; पू०२२/२ की टिप्पणी। कूर्म पू०१/६ में ‘सुत्याहे’ शब्द का अर्थ अन्य प्रकाशनों में ‘यज्ञान्त में स्नान’ किया गया है जो कि असंगत है। वस्तुतः ‘सुत्याहे’ का अर्थ ‘सोम सवन का दिन’ होता है। ‘गुर्वी’ (उ०१२/२७) का गुरुपली अर्थ किया गया है, जो कि अशुद्ध है। उसका शुद्ध अर्थ इस पुस्तक में ‘गर्भवती’ किया गया है। कूर्मपुराण पू० १०/२१ में ब्रह्मा के प्राणत्याग का उल्लेख मात्र है किन्तु इस प्रस्तुत संस्करण में लिङ्गपुराण पू० २२/२६ से लेकर शिव के द्वारा ब्रह्मा को पुनर्जीवित करने का पाठ जोड़ा गया है (कूर्म पू० १०/२२)। वस्तुतः कूर्मपुराण में सैकड़ों स्थलों में कुछ शब्दों के प्रसंगानुकूल न होने के कारण अर्थबोध में कठिनाई का आभास होता है।

देवासुरैः क्षीरसमुद्रमध्यतो न्यस्तो गिरिर्येन घृतः पुरा महान्। हिताय कौमैं वपुरास्थितो यस्तं विष्णुमाद्यं प्रणतोऽस्मि भास्करम् ।।

(श्रीनृसिंहपुराण ५३:१८)

देवताओं और असुरों द्वारा क्षीरसागर का मन्थन करते समय पूर्वकाल में जिन्होंने सबके हित के लिये प्रकाशमान कूर्म रूप से डूबते हुए महान् मन्दराचल (पर्वत) को धारण किया था, उन आदिदेव भगवान् विष्णु को मैं प्रणाम करता हूँ।

पुराणों को भारतीय संस्कृति का विराट् कथात्मक कोश कहा जाय तो अत्युक्ति नहीं होगी, परन्तु इनका आधार वेद ही हैं। वेदों में जिन विषयों को सूत्ररूप में कहा गया।

है, पुराणों में उन्हीं को व्याख्यायित किया गया है। उदाहरण के रूप में यजुर्वेद (५:१५) के ‘इदं विष्णुर्वि चक्रमे त्रेधा नि दधे पदम् । समूढमस्य पासुरे स्वाहा’ मन्त्र में भगवान् * विष्णु के वामन रूप धारण करके तीन पग में सम्पूर्ण पृथ्वी और आकाश को नाप लेने की बात कही गयी है; यह कथा विस्तार से अनेक पुराणों में आयी है। इसी प्रकार तैतिरीय- ब्राह्मण (१:१:३:६) में भगवान् के वराहावतार और पृथ्वी के उद्धार की कथा सूत्ररूप में है- ‘स (प्रजापतिः) वै वराहो रूपं कृत्वा उपन्यमज्जत । स पृथिवीमध आर्च्छत् । तस्या उपहत्योदमज्जत्’ । यह कथा भी अनेक पुराणों में विस्तार के साथ प्राप्त होती है। इसीलिए पुराण और इतिहास को पाँचवें वेद की संज्ञा दी गयी है- इतिहासपुराणाभ्यां पश्चमो वेद उच्यते’ । साथ ही यह भी कहा गया है कि वेद के निगूढ अर्थों को इतिहास और पुराणों के द्वारा समझना चाहिये- ‘इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत् । बृहदारण्यकोपनिषद् (२:४:१०) के अनुसार पुराणों को भी वेदों की ही भाँति ईश्वर का निःश्वास स्वीकार किया गया है-

‘अस्य महतो भूतस्य निश्वसितमेतद् यद् ऋग्वेदो यजुर्वेदः सामवेदोऽथर्वाङ्गिरस इतिहासः पुराणम्’ ।

मत्स्यपुराण तथा ब्रह्माण्डपुराण तो पुराणों को वेदों से भी पूर्व का बताते हैं। उनके अनुसार ब्रह्माजी ने समस्त शासों में सर्वप्रथम पुराणों का स्मरण किया और उसके अनन्तर उनके मुख से वेद प्रकट हुए-

पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्। अनन्तरं च वक्त्रेभ्यो वेदास्तस्य विनिर्गताः ।।

Weight 6415688 g

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