महाभारत
महाभारत एक विशालकाय महाकाव्य है, इसे साहित्य का सागर कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। इस जैसा दूसरा महाकाव्य न संस्कृत साहित्य में, न भारत के किसी अन्य साहित्य में और न ही विश्वसाहित्य में देखने को मिलता है।
वर्तमान युग में एक नये प्रकार की कोषगठन की विधा अस्तित्व में आयी। पाश्चात्य वैदिक विद्वानों कीथ और मैक्डॉनल ने संस्कृत साहित्य की समस्या का गहराई से मन्थन किया और उनके लिए नयी विधा का सृजन भी। इन्होंने व्यक्तिवाचक नाम को लेकर सन् १९०० के आसपास वैदिक इण्डेक्स नामक ग्रन्थ का गठन किया। लगभग इसी समय ब्लूमफिल्ड ने वैदिक पादानुक्रमकोष तथा हर्मन ग्रासमैन ने ऋग्वैदिक डिक्शनरी का गठन किया। इनके कार्यों से प्रेरित होकर, उसे पूर्णता प्रदान करते हुए, आचार्य विश्वबंधु शास्त्री ने सन् १९३५-१९६५ तक कार्य करके वैदिक साहित्य को दोहन सुगम बनाने के लिए वैदिक-पदानुक्रम-कोष का गठन किया, इसमें वेद से लेकर ब्राह्मण साहित्य तथा उपनिषदों को समाहित कर लिया गया।
विश्वसाहित्य में सम्भवतः संस्कृत ही वह भाषा है, जिसमें उक्त तकनीक का आश्रय लेकर कोषों का गठन प्रारम्भ हुआ और आज भी हो रहा है। प्रस्तुत पुस्तक में गीता प्रेस गोरखपुर के संस्करण को आधार बनाकर महाभारत-पदानुक्रम-कोष को तैयार किया गया है। गीता प्रेस गोरखपुर के संस्करण में १००२७७ श्लोक हैं। इसमें से ८८६०० उत्तर भारतीय पाठकी के हैं और ६५८४ दाक्षिणात्य पाठकी के। साथ ही ७०३२ श्लोक उवाच की संख्या के हैं। इसकी सहायता से शोधार्थी बड़ी सरलता से अपने शोध विषय तक पहुँच बना सकते हैं और एक विषय पर जो भी महाभारत में कहीं भी कहा गया है, उसके विषय में सम्पूर्ण अध्ययन करके सुसंगत निष्कर्ष प्रस्तुत करने में समर्थ हो सकते हैं। यह एक ऐसा कार्य है कि जो संस्कृत साहित्य की शोध की अपेक्षाओं को वैज्ञानिक रूप से पूर्ण करता है तथा उसे वर्तमान युग की अपेक्षाओं के अनुरूप आधारभूत ढाँचा प्रदान करता है
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