पुस्तक का नाम – मेरा आजीवन कारावास
लेखक का नाम – विनायक दामोदर सावरकर
भारतीय क्रान्तिकारी इतिहास में स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर का व्यक्तित्व अप्रितम गुणों का द्योतक है। ‘सावरकर’ शब्द ही अपने आपमें पराक्रम, शौर्य और उत्कट देशभक्ति का पर्याय है।
अपनी आत्मकथा मेरा आजीवन कारावास में उन्होनें जेल-जीवन की भीषण यातनाओं – ब्रिटिश सरकार द्वारा दो-दो आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद अपनी मानसिक स्थिति, भारत की विभिन्न जेलों में भोगी गई यातनाओं और अपमान, फिर अंडमान भेजे जाने पर जहाज पर कैदियों की यातनामय नारकीय स्थिति, कालापानी पहुचनें पर सेलुलर जेल की विषम स्थितियों, वहाँ के जेलर बारी का क्रूरतम व्यवहार, छोटी-छोटी गलतियों पर दी जानेवाली अमानवीय शारीरिक यातनाएँ, यथा – कोडे़ लगाना, बेंत से पिटाई करना, दंडी-बेड़ी लगाकर उलटा लटका देना आदि का वर्णन मन को उद्वेलित कर देनेवाला है।
विषम परिस्थियों में भी कैदियों में देशभक्ति और एकता की भावना कैसे भरी, अनपढ़ कैदियों को पढा़ने का अभियान कैसे चलाया, किस प्रकार दूसरे रचनात्मक कार्यों को जारी रखा तथा अपनी दृढ़ता और दूरदर्शिता से जेल के वातावरण को कैसे बदल डाला, कैसे उन्होनें अपनी खुफिया गतिविधियाँ चलाई आदि का सच्चा इतिहास वर्णित है।
इसके अतिरिक्त ऐसे अनेक प्रसंग, जिनको पढ़कर पाठक उत्तेजित और रोमांचित हुए बिना नहीं रहेंगे। विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी कुछ अच्छा करने की प्रेरणा प्राप्त करते हुए आप उनके प्रति श्रद्धानत हुए बिना नहीं रहेंगे।
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