Vedrishi

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मुग़ल साम्राज्य का क्षय और उसके कारण

Mughal Samrajya Ka Kshay Aur Uske Karan

340.00

SKU 36498-VP00-0H Category puneet.trehan

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Subject : About Mughal Empire 
Edition : N/A
Publishing Year : N/A
SKU # : 36498-VP00-0H
ISBN : N/A
Packing : Hardcover
Pages : 480
Dimensions : N/A
Weight : NULL
Binding : Hard Cover
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एक प्रबुद्ध व्यक्ति ने एक बात कही थी कि “जो लोग अपना इतिहास भूल जाते हैं वे अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकते”। हम भारतीयों की हालत भी कुछ ऐसी ही हैं। आज जनसाधारण मालूम ही नहीं कि हमारा इतिहास कितना महान था। हमारे यहाँ पर कितने गौरवशाली राजा, महाराजा हुए जिनका शौर्य विश्व के हर कौने तक फैला था। हमारे देश में महान वेदों की विद्या का प्रकाश था जिससे सम्पूर्ण संसार शिक्षा प्राप्त करता था। इस अन्धकार का मूल कारण हमारी शिक्षा प्रणाली हैं जिसमें हमें यह तो पढ़ाया जाता हैं कि हमारे पूर्वज आर्य बाहर से आये थे एवं उन्होंने यहाँ के निवासियों को हराकर राज किया। हमें यह पढ़ाया जाता हैं कि हमारे देश पर आक्रमण करने वाले मुहम्मद गौरी और मुहम्मद गज़नी महान थे। मुगलों का कार्यकाल हमारे देश का सबसे न्यायप्रिय शासनकाल था। अकबर सबसे महान एवं धर्मनिरपेक्ष सुल्तान था। इस प्रकार से एक छात्र के अपरिपक्व मस्तिष्क में एक ही बात सदा सदा के लिए बैठा दी जाती हैं जिससे वह गलानी भेद का शिकार हो जाये। उसे अपनी जाति, अपनी सभ्यता, अपने इतिहास पर कभी गर्व न हो। इस इतिहास प्रदुषण के लिए हमें यथार्थ इतिहास से परिचित करवाना आवश्यक हैं। पंडित इंद्र जी कि पुस्तक इसी कड़ी में एक महान ग्रन्थ हैं जिसका पुन: प्रकाशन होना गर्व का विषय हैं। इस ग्रन्थ की पृष्ठभूमि आज से 10 वर्ष पूर्व बननी आरम्भ हुई थी। मेरे कॉलेज में एक मुस्लिम विद्यार्थी से मेरी चर्चा हो रही थी तो वह बोला कि मुग़ल सुल्तान कितने महान थे। उन्होंने इस देश पर 300 वर्ष राज किया था। मुझे यह बात कुछ चुभ सी गई। मैंने उसका यथासंभव प्रतिकार तो किया मगर मन में यह संकल्प किया कि इस घमंड का मर्दन कैसे होगा। इसी कड़ी में मेरे समक्ष पंडित जी कि यह पुस्तक पढ़ने में आई जिसमें मुग़ल साम्राज्य के क्षय के कारणों की समीक्षा गई थी। पढ़कर ऐसा लगा मानो मुंहमांगी मुराद पूरी हो गई। मुग़ल साम्राज्य को महान बताने वाले इस पुस्तक को पढ़ेंगे तो जानेंगे कि कैसे अकबर के पश्चात शासन करने वाले शासक अफीम, शराब और शबाब के मुरीद थे, कैसे सलीम ने अपने ही बाप अकबर के साथ बगावत कि थी, कैसे जहांगीर जहाँ एक और दुर्व्यसनी था वही अपनी पत्नी नूरजहाँ का गुलाम भी था,कैसे औरंगजेब ने अपनी सगे भाइयों को धोखे से मरवाया था, कैसे अपने बाप शाहजहाँ को बंदी बनाकर आगरे के किले में प्यासा मार डाला था, जिस राज्य के ओहदेदार ऐसे लड़ते हो वहाँ की प्रजा का कैसा हाल होगा, कैसे औरंगज़ेब कि नीतियों के कारण मुग़ल साम्राज्य की नींव हिल गई, उसका खजाना खाली हो गया, उसके सेना युद्ध लड़ लड़ कर बुड्ढी हो गई और अपना राज गवां बैठी, कैसे भारत के हर कौने में हिन्दू राजा उठ खड़े हुए, पंजाब में सिखों, राजस्थान में राजपूतों, महाराष्ट्र में शिवाजी के नेतृत्व में मराठों, बुंदेलखंड में वीर छत्रसाल के नेतृत्व में बुंदेलों, मथुरा के जाटों आदि ने औरंगज़ेब की मतान्ध नीतियों का पुरजोर विरोध किया था। औरंगज़ेब के बाद मुग़ल साम्राज्य की शोचनीय दशा, शासन के लिए उसके लगातार बढ़ते झगड़े, वीर बंदा बैरागी की आंधी, फ़र्रुख़सियर और सैय्यदों का अंत,मराठा शक्ति का अखिल भारतीय उदय, दिल्ली में नादिरशाह का खुनी खेल से लेकर मुग़लों का कठपुतली बनने का वृतान्त सरल एवं सुन्दर शब्दों में मिलता हैं।

इस पुस्तक को पढ़कर पाठक यही कहेंगे की मुग़ल साम्राज्य से अधिक महान गाथा तो वीर मराठों, वीर जाटों, वीर बुंदेलों, वीर सिखों, वीर सतनामियों, वीर राजपूतों की हैं जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष कर मुगलों को उनकी मतान्ध एवं अनुदार नीति का प्रतिउत्तर दिया।इस पुस्तक को हर इतिहास के विद्यार्थी को भेंट देना चाहिए जिससे उसे जीवन में अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा मिले।

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