पुस्तक का नाम – नैतिक शिक्षा (दस भागों में)
लेखक का नाम – सत्यभूषण वेदालंकार
नैतिकता, मानवता, धर्म, उदात्तता, दिव्यता – इन सब शब्दों में एक ही भाव-धारा प्रवाहित है, सच्चा मानव वही है, जिसे हर कोई प्रेम करे। सच्चा धर्म भी वही है, जिसकी बातें कल्याणकारी लगें। सभी बच्चे विश्वात्मा बनें, विश्व मानव बनें, आर्य कहलाएँ – यही नैतिकता है, यही धर्म है। जो लोगों को वर्गों में बाँट दे, वह केवल मजहब है, संप्रदाय है, मत है, पंथ है; वह धर्म नहीं हो सकता है। नैतिकता या धर्म वही है जिसमें एकता और आपसी प्रेम का सन्देश हो। सभी लोग, सभी बालक और बालिकाएँ सबको साथ ले कर चलें, सभी मिलकर परिश्रम करें और देश, कुल और धर्म का नाम ऊंचा करें। सभी दूसरों का दुःख जानें और वेदों के सन्देश को समझे, यही नैतिकता है, यही आर्यत्व है, यही विश्व धर्म है।
प्रस्तुत पुस्तकें नैतिक शिक्षा के दस भागों में है। इनमें कुछ ऐसे पाठ दिये गये हैं, जिन्हें सभी माता-पिता और गुरुजनों को अपने बच्चों और छात्रों को देना चाहिए।
इस पाठमाला के भागों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है –
1) नैतिक शिक्षा – 1 – इसमें ईश्वर से प्रार्थना, हमारा नाम, हमारा सबसे बड़ा ग्रन्थ, माता-पिता की सेवा, गुरु की सेवा, महर्षि वाल्मीकि, अच्छे बालक क्या करते हैं? इन विषयों को सरल ढ़ग से प्रस्तुत किया है।
2) नैतिक शिक्षा – 2- इसमें प्रार्थना से प्रारम्भ करते हुए ओम् की महिमा, गायत्री मन्त्र, विद्या, प्रातःकाल का महत्त्व, आर्य समाज के उपकार, धर्मवीर हकीकतराय, शिष्टाचार के नियम इन विषयों को सम्मलित किया है।
3) नैतिक शिक्षा – 3 – इस भाग में भी सर्वप्रथम प्रार्थना की गई है फिर आचार्य के शिष्य को उपदेश, ओम् के अर्थ, स्तुति, प्रार्थना, उपासना, आर्यवीर की दिनचर्या, उपनिषद्, आर्य समाज के नियम, बोध रात्रि, मीठी वाणी, खेलने वाला बालक, तीर्थ, पं. गुरुदत्त विद्यार्थी इन विषयों को सम्मलित किया है।
4) नैतिक शिक्षा – 4 – इस भाग में प्रार्थना के पश्चात् प्रातः कालीन मन्त्र, संध्या, संध्या के मन्त्र, ब्राह्मण ग्रन्थ, ब्रह्मचर्य की महिमा, सात मर्यादा, विद्यार्थी के दोष, दण्डी स्वामी श्री विरजानन्द जी, तीन ऋण, यम-नियम, अनमोल वचन आदि विषयों का वर्णन है।
5) नैतिक शिक्षा – 5 – इसमें राष्ट्रीय प्रार्थना की गई है पश्चात् ओम् के उन्नीस अर्थ बताएं है, ईश्वर पर विश्वास, संध्या, यज्ञ, भजन, आर्यसमाज के नियम, स्वामी श्रद्धानन्द, महर्षि दयानन्द द्वारा लिखित स्वदेश भक्ति और राजनीति के कुछ सूत्र, वैदिक सूक्तियाँ का वर्णन है।
6) नैतिक शिक्षा – 6 – इसमें प्रार्थना के पश्चात् आर्य समाज का दूसरा और तीसरा नियम, संध्या के मन्त्र, ईश्वर सर्वव्यापक है, व्यायाम, ईश्वर के अनेक नाम, सरदार भगतसिंह, निन्यानवे का फेर, सीता, यज्ञोपवीत, दान की महिमा, आर्य जाति के पर्व, मित्र को पर्व, यजुर्वेद की सूक्तियों का वर्णन है।
7) नैतिक शिक्षा – 7 – इसमें प्रार्थना के पश्चात् आर्य समाज का चौथा और पाँचवाँ नियम, संध्या के मन्त्र, पार्वती, बाल ब्रह्मचारी के कारनामे, घातक विष नशा, आर्य जाति के पर्व, सुख-दुःख क्या है?, स्वामी दर्शनानन्दजी महाराज, एक शिक्षादायक घटना, भजन, गीता, देवयज्ञ से लाभ, देवयज्ञ के मन्त्र, शरीर को निरोगी रखने के नियम, सत्यार्थ प्रकाश के दूसरे समुल्लास का सारांश, जीवन-ज्योति, मातृभूमि बलिदान माँगती है, सामवेद की सूक्तियों का वर्णन है।
6) नैतिक शिक्षा – 8 – इसमें प्रार्थना के पश्चात् स्वामी सर्वदानन्द जी का वर्णन, बाल ब्रह्मचारी के कारनामे, महर्षि दयानन्द के उपकार, सावित्री, सत्यार्थप्रकाश का तीसरा समुल्लास और चौथे समुल्लास का सार, कविता, ब्रह्मयज्ञ, हवन-मन्त्र, आर्यसमाज का छठा और सातवाँ नियम, आर्यों के पर्व, पितृयज्ञ, श्राद्ध, भूत-प्रेत, नशा, चन्द्रशेखर आजाद, वेद कौन ले गया और वे कैसे आये?, भजन और हँसो और हँसाओं, संस्कृत की सूक्तियाँ का वर्णन है।
9) नैतिक शिक्षा – 9 – प्रार्थना के पश्चात् देवयज्ञ, सत्संगति, भजन, सत्यार्थ प्रकाश के पाँचवें और छठे समुल्लास का सार, सांतवें समुल्लास का सार, श्रीकृष्ण, ज्ञान, कर्म, उपासना, गुरु नानक, भजन, आर्यों के पर्व, श्रीराम, वीर पिता की वीर पुत्रियाँ, फुटकर पद, रामप्रसाद बिस्मिल, वैरागी के दो चेले, क्या ईश्वर अवतार लेता है?, पं. श्यामजी कृष्ण वर्मा, मुर्तिपूजा से हानियाँ, स्वामी जी की देशभक्ति, दोषी कौन, अथर्ववेद की सूक्तियाँ, सती अनुसूया, नीति काव्य और शिष्टाचार का वर्णन है।
10) नैतिक शिक्षा – 10 – इसमें प्रार्थना के पश्चात् विश्वश्चचक्षुरुत मन्त्र का भाव समझाया है, आर्य समाज के आठ से दस नियमों का सार बताया है, सुभाषचन्द्र बोस, षट्क सम्पति, वीर सावरकर, लक्ष्मीबाई, जैसे को तैसा, महात्मा हंसराज की स्मृति में, आर्यसमाज की स्थापना क्यों?, क्या जीव और ब्रह्म एक हैं?, नारी धर्म, 16 आदर्श , वैदिक धर्म की विशेषताएं, वेदों की सूक्तियां, ऋषि दयानन्द की गुरु – दक्षिणा, उपनिषदों की शिक्षा का वर्णन किया है।
यह पाठमाला बालकों के लिये अतीव उपयोगी है। यह पाठमाला जहाँ सभी पाठशालाओं और वाचनालयों की शोभा बढाएगी, वहाँ भेंट-उपहार के लिए सर्वोत्तम मानी जाएगी।
Reviews
There are no reviews yet.