पुस्तक परिचयः निरूक्तवृत्ति (निरूक्त के प्रथम, द्वितीय एवं सप्तम अध्यायों का विश्लेषणात्मक विवेचन) लेखकः- प्रो. ज्ञानप्रकाश शास्त्री
निरूक्त वेद का पथ प्रशस्त करता है, वेद का पथ ही सत्य का पथ है, जो उसका अध्ययन करता है, वेद उसका मित्र है। यह तथ्य निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाता है कि वेदव्याख्या के लिये निघण्टु की अपनी एक विशिष्ट उपयोगिता है। वेद के जितने भी प्राचीन और अर्वाचीन व्याख्याकार हुए हैं, उन सभी ने निघण्टु के महत्व को स्वीकार करते हुए वेदव्याख्या के प्रसङ्ग में उसको उदधृत किया है।
प्रस्तुत पुस्तक में निरूक्त के प्रथम, द्वितीय एवं सप्तम अध्यायों का एक उच्च स्तरीय विश्लेषणात्मक विवेचन प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक प्रायः सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। आशा है कि विद्यार्थी एवं जिज्ञासुजन इस पुस्तक से अवश्य लाभान्वित होंगे।
Reviews
There are no reviews yet.