पुस्तक का नाम – पारस्कर गृह्यसूत्र (कृष्णाभाष्योपेतम्)
लेखक – डा. सत्यव्रत राजेश
वेदांगों के अंतर्गत कल्पसूत्र हैं, कल्पो के अंतर्गत गृह्यसूत्र हैं। यह आर्ष ग्रन्थ हैं, इन्ही को ले कर ऋषि दयानन्द जी ने सांस्कृतिक विधि नामक ग्रन्थ की रचना की जिसमें उन्होनें विभिन्न गृह्यसूत्रों को प्रमाण के रूप में रखा है। इसमें सर्वाधिक पारस्कर गृह्यसूत्र को रखा है।
प्रस्तुत पुस्तक पारस्कर गृह्यसूत्र का आर्य भाषानुवाद है।
इस भाषानुवाद की विशेषताएं निम्न हैं –
१. एक साथ संस्कृत का अनुवाद देने के स्थान पर प्रत्येक पद के साथ हिन्दी अनुवाद दिया गया है।
२. अस्पष्ट स्थलों को स्पष्ट करने का पूरा प्रत्यन्न किया है।
३. प्रत्येक परिशोधन के अंतर्गत ऋषि दयानन्द का मत भी प्रस्तुत किया है।
४. अर्घ्य विधि अन्तर्गत जिस प्रकरण में अन्य भाष्यकारों ने गौ-वध अर्थ किया है, वहाँ अनुवादक ने युक्ति-युक्त व्याख्या द्वारा उसका अर्थ गौ-दान प्रमाण समेत किया है तथा अनेको वैदिक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं।
५. अवकीर्णी प्रायश्चित में जहाँ अन्य भाष्यकारों और अनुवादकों ने गधे को मारना और मरे गधे से होम जैसा अवैदिक विधान निकाल रखा है, वहीं प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने गधे के सदृश्य जीवन बताया है।
६. इसी तरह अन्नप्राशन में तथा अन्य स्थलों पर आये क्षेपक प्रकरण को सप्रमाण उनके क्षेपक होने का कारण प्रस्तुत किया है।
७. पुस्तक का कागज बढिया और शब्द मोटे सुन्दर छपाई में है जो लंबे समय तक सुरक्षित रहेगी।
आशा है पाठक इस भाषानुवाद द्वारा पूर्णतः लाभान्वित होंगे, तथा परिशोधन के महत्व को समझ कर उनका व्यवहारिक रूप से पालन भी करेंगे।
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