पुस्तक का नाम – पूर्व इमाम की कलम से
लेखक का नाम – पण्डित महेन्द्रपाल आर्य
शास्त्रार्थवीर पण्डित महेन्द्रपाल आर्य जी 1980 से लेकर 1983 तक जिला बागपत, बावली बरवाला, या नसोली बरवाला जहाँ के ड़ॉ. सत्यपाल सिंह जी एम्. पी. बागपत हैं। उसी बरवाला की एक बड़ी मस्जिद में इमाम थे। ग्राम में दोनों समय तकरीर किया करते थे और लोगों को प्रार्थना के लिए प्रातः काल ही उठा देते थे। जब पण्डित जी ने वैदिक धर्म की शरण ली तब से उनका एक ही लक्ष्य बन गया जो निम्न प्रकार है –
“सत्य सनातन वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार करना, महर्षि दयानन्द सरस्वती जी द्वारा बताये वैदिक मार्ग का अनुसरण करना। वैदिक सिद्धान्तों को मानते हुए, पूरे विश्व में वैदिक सिद्धान्तों को फैलाना”
आज यही पण्डित जी का मुख्य लक्ष्य है। इस लक्ष्य को पण्डित जी पूरी निष्ठा और लग्न से प्राप्त करने में लगे हुये हैं।
अपनी सम्पूर्ण लेखनियों का निचौड़ पण्डित जी ने प्रस्तुत पुस्तक ‘पूर्व इमाम की कलम से’ में किया है। इस पुस्तक का यह नाम इस कारण रखा गया कि सत्य असत्य का निर्णय लेने में हर मनुष्य कहलाने वाले को सरल और सहजता रहे।
लोगों के मन में जो सवाल उठें उनका अपने आप समाधान होता जाये और इस बात का भी पता चले कि “आखिर क्या बात है जो एक मस्जिद का इमाम होते हुए भी उन्होने अपनी कलम से क्या लिखा?” जन्म से जिनके साथ इस्लाम का संपर्क रहा, इस्लामी शिक्षा ही जिनके जीवन का अंग रहा, उन्होनें इस्लाम को त्याग कर सत्य सनातन वैदिक धर्म किसलिए अपनाया?
इस पुस्तक में यह भली प्रकार दर्शाने का प्रयास किया गया है कि कुरान पर क्या-क्या सवाल उठ सकता है?
इस पुस्तक में पण्डित जी ने भलिभांति सिद्ध किया है कि एकमात्र वेद ही ईश्वरीय ज्ञान है कुरान नही, क्योंकि वेदों में जहां मानव मात्र के लिए उपदेश है वहीं कुरान में केवल मुसलमानों के लिए, मोमेनातों के लिए उपदेश और आदेश है।
इस पुस्तक में पण्डित जी नें अनेकों प्रमाणों से सिद्ध किया है कि कुरानी शिक्षा आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली है यदि आतंकवाद को समाप्त करना है तो कुरान को त्याग कर वेदों को अपनाना होगा।
पण्डित जी नें कुरान के प्रत्येक संदर्भ के साथ-साथ मूल अरबी लिपि में भी आयतों को अंकित किया है तथा प्रत्येक सूरा का अनुवाद मौलाना फारूख खान के हिन्दी अनुवाद से दिया गया है। इससे इस पुस्तक की प्रमाणिकता पर कोई संदेह खड़ा करने का अवसर ही प्राप्त नहीं होता है।
कुरानी आयतों के प्रमाणों से पण्डित जी ने इस्लामी जन्नत की पूरी पोलखोल दी है।
कुरान के सृष्टि विज्ञान पर पण्डित जी ने प्रस्तुत पुस्तक में अनेकों दार्शिनिक और युक्ति युक्त प्रश्न किये हैं।
सृष्टि रचना के विषय में कुरान में आने वाले परस्पर विरोधाभासों को दर्शाकर पण्डित जी ने कुरान के ईश्वरीय होने पर प्रश्नचिह्न लगा दिये है।
पुस्तक में मुस्लिमों द्वारा प्रायः बोला जाने वाला वाक्य इंशा अल्लाह कितना खोखला है इसे प्रमाणों और युक्तियों द्वारा सिद्ध किया है।
कुरान की जन्नती हूरों और अन्य प्रलोभनों जिनके माध्यम से इस्लाम का प्रचार प्रसार हुआ, उसकी वास्तविकता से इस पुस्तक में अवगत कराया गया है।
इस्लाम में गैर मुस्लिमों से भेदभाव और महिलाओं की दयनीय स्थिति को इस पुस्तक में दर्शाया गया है।
अल्लाह ईश्वर नहीं है, वो निराकार नहीं है आदि अल्लाह सम्बन्धित कई रहस्यों को इस पुस्तक में कुरान के प्रमाणों द्वारा खोला गया है।
ज्वलन्त मुद्दा तीन तलाक पर भी पण्डित जी ने एक लेख प्रस्तुत पुस्तक में दिया है। इस प्रकार यह पुस्तक कुरानिक मत का खंड़न और वैदिक धर्म का मण्डन करती है तथा हिन्दुओं को इस्लामिक षड़यंत्रों से सावधान भी करती है।
आइये इस पुस्तक के अध्ययन के साथ ही हम प्रतिज्ञा लें मानव बनने का और अपना जीवन को सत्य स्वीकार करके धन्य बनाने का।
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