पुस्तक का नाम – ऋग्वेद ज्योति
लेखक का नाम – आचार्य रामनाथ वेदालङ्कार
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने वेदों की ओर चलो इस आह्वान के साथ वेदों के सत्यार्थ को प्रकाश में लाने के उद्देश्य से सम्पूर्ण यजुर्वेद और ऋग्वेद के सप्तम मण्ड़ल के 62 वें सूक्त तक भाष्य किया। उनके बाद कई आर्य विद्वानों ने भी भाष्य किये।
ऋग्वेद में विभिन्न नामों से एक ईश्वर की उपासना, वर्णव्यवस्था, आश्रम-मर्यादा, यज्ञ, धनसमृद्धि, दान, परोपकार, राजनीति, उद्बोधन, वीरता, राक्षससंहार, न्याय एवं दण्ड़-नीति, विद्याध्यन, वृष्टि, सिंचाई, कृषि, व्यापार, श्रद्धा, अलक्ष्मीनिवारण, रोगमुक्ति, दीर्घायुष्य, सङ्गठन आदि का वर्णन मिलता है। इसमें सोम और सूर्या के विवाह के रूपक द्वारा विवाह एवं गृहस्थ के आदर्शों का चित्रण किया गया है। देवजान – सूक्त, पुरुष – सूक्त, सवितृ – सूक्त आदि में सृष्टियुत्पत्ति – सम्बन्धी गूढ़ दार्शनिक चिन्तन प्रस्तुत किया गया है। परमात्मा, जीवात्मा, मन, प्राण, शरीर, आदि के रहस्यों का भी उद्घाटन मिलता है।
इसमें कतिपय संवाद सूक्त भी है जैसे कि अगस्त्य लोपमुद्रा संवाद, विश्वामित्र नदी संवाद, पुरुरवा उर्वशी संवाद, सरमा पणि संवाद आदि। ये संवाद सूक्त संवादात्मक शैलियों की विविध शिक्षाएँ प्रदान करते हैं। इसी में कई दान स्तुतियों द्वारा दान के महत्त्व को बताया गया है। इस प्रकार ऋग्वेद में अनेकों शैलियों में अनेकों विद्याएँ वर्णित है।
इसीलिए ज्ञान-विज्ञान की प्राप्ति के लिए वेदों का अध्ययन आवश्यक है, किन्तु जिन लोगों के पास सम्पूर्ण वेद का परायण करने का समय नहीं है। उनके लिए आचार्य रामनाथ वेदालंकार जी ने ऋग्वेद के 200 मन्त्रों को चुनकर अन्वयार्थ एवं विस्तृत व्याख्यापरक संकलन ऋग्वेद ज्योति नाम से किया है।
– इस ग्रन्थ में प्रथम मन्त्र का विषय अंकित किया है।
– इसके बाद मंत्र के देवता, ऋषि और छन्द का उल्लेख किया है।
– अन्वयार्थ प्रस्तुत किया है तथा अर्थ में सहायक अन्य ग्रन्थों का संदर्भों को टिप्पणी में उद्धृत किया है।
– अन्वयार्थ के पश्चात् विस्तृत भाष्य को प्रस्तुत किया गया है।
– परिशिष्ट भाग में मन्त्रानुक्रमणिका को प्रस्तुत किया है।
आशा है कि पाठकगण वेदव्याख्यापरक ‘ज्योतियों’ से स्वयं को आप्लावित कर वैदिक ऋचाओं का आनन्द प्राप्त करेंगे।
Reviews
There are no reviews yet.