Vedrishi

Free Shipping Above ₹1500 On All Books | Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 | Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |
Free Shipping Above ₹1500 On All Books | Minimum ₹500 Off On Shopping Above ₹10,000 | Minimum ₹2500 Off On Shopping Above ₹25,000 |

ऋग्वेद प्रातिशाख्यम्

Rigveda Pratishakhyam

800.00

Subject : Rigvediya Shakha
Edition : N/A
Publishing Year : N/A
SKU # : 36664-RK00-0S
ISBN : N/A
Packing : Hardcover
Pages : N/A
Dimensions : N/A
Weight : NULL
Binding : Hard Cover
Share the book

पुस्तक का नाम ऋग्वेद प्रातिशाख्य

व्याख्याकार एवं अनुवादक डॉ. वीरेन्द्रकुमार वर्मा

संसार में भारत को जो प्राथमिक प्रतिष्ठा प्राप्त हुई वह वेदों के माध्यम से ही प्राप्त हुई है। मानव जाति के इतिहास के ज्ञान के लिये, भारतीय संस्कृति को समझने के लिये और भाषा-विज्ञान की पुष्टि  के लिए वेदों का अध्ययन अत्यन्त आवश्यक है। इसके साथ ही यह भी सत्य है कि षड् वेदाङ्गों के मौलिक अनुशीलन, मनन एवं पर्यालोचन के बिना वेदों का अध्ययन पूर्ण नहीं माना जा सकता है और न इसके बिना वेदों को भलीभाँति समझा ही जा सकता है।

पूराकाल में आर्यजन गुरु-मुख से वेद मन्त्रों का अध्ययन करके उनको स्मरण रखते थे। बाद में जैसे-जैसे भाषा में परिवर्तन होने लगा तो ऐसी परिस्थिति में वर्ण, स्वर, मात्रा, संधि, छन्दः आदि के विशिष्ट नियमों के अभाव में वैदिक मन्त्रों का शुद्ध उच्चारण दुरूह-सा हो गया। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये प्रातिशाख्यों के रूप में संसार का प्राचीनतम वैज्ञानिक ध्वनि-अध्ययन भारत में निष्पन्न हुआ। प्रातिशाख्यों में पांच प्रातिशाख्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है ऋग्वेदप्रातिशाख्य, तैत्तिरीय प्रातिशाख्य, वाजसनेयि प्रातिशाख्य, अथर्ववेदप्रातिशाख्य तथा ऋक्तन्त्र।

यह ग्रन्थ वैदिक मन्त्रों के शुद्धोच्चारण के लिये वेद की प्रत्येक शाखा का ध्वनि-विषयक अध्ययन को सम्पन्न करवाते है। अतः एक-एक शाखा से सम्बन्ध होने के कारण ही ये ग्रन्थ प्रातिशाख्य कहलाते हैं। इन ग्रन्थों में उदात्तादि स्वरों, वर्णों की संधियों, वर्णों के उच्चारण के गुणों और दोषों, वर्णों की उत्पत्ति, पद-पाठ से संहिता पाठ बनाने के नियमों आदि अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों को इन प्रतिशाख्यों में प्रस्तुत किया गया है।

यहां प्रश्न यह हो सकता है कि मन्त्रों के बाह्य स्वरूप के ज्ञान के लिये शिक्षा-ग्रन्थों, व्याकरण-ग्रन्थों और छन्दोग्रन्थों के होते हुए प्रातिशाख्य ग्रन्थों की क्या उपयोगिता है? इसका उत्तर है कि शिक्षा ग्रन्थ, व्याकरण-ग्रन्थ और छन्दोग्रन्थ सभी वेदों के विषय में सामान्य बाते बतलाते हैं, उनका सम्बन्ध वेदों की किसी शाखा के साथ नहीं है किन्तु प्रातिशाख्य का मुख्य सम्बन्ध मुख्य रुप से वेद की किसी एक विशिष्ट शाखा के साथ होने के कारण प्रत्येक प्रातिशाख्य शाखा-विशेष का ऊहापोह करके उसका विशिष्ट एवं साङ्गोपाङ्ग अध्ययन प्रस्तुत करता है। इसके अतिरिक्त क्रम-पाठ, क्रम-हेतु, वेदों का परायण इत्यादि अनेक विषयों का प्रतिपादन भी प्रातिशाख्य-ग्रन्थों में किया गया है जिन्हें शिक्षा-ग्रन्थों, व्याकरण-ग्रन्थों और छन्दोग्रन्थों में कोई स्थान नहीं मिला है। इन प्रातिशाख्यों में भी ऋग्वेदप्रातिशाख्य प्राचीनता, प्रामाणिकता तथा विषय के विस्तृत एवं वैज्ञानिक अध्ययन की दृष्टि से सभी प्रातिशाख्य-ग्रन्थों में शीर्षस्थान पर है। इस प्रतिशाख्य में ऋग्वेद की शाकल शाखा की शैरिरीय उपशाखा का साङ्गोपाङ्ग विवेचन प्रस्तुत किया गया है। इस प्रातिशाख्य की निम्न विशेषताएं हैं

  1. इस प्रातिशाख्य में संधि आदि नामों के रूप में अनेक ऐसे पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया है जो अन्यत्र कहीं उपलब्ध नहीं होते है, जैसे अन्वक्षरसंधिवक्त्र, अकाम, नियत, प्रतिकण्ठ, प्रत्याम्नाय, न्याय, प्रत्यय, प्रवाद आदि।
  2. इस प्रातिशाख्य में प्रयोग किये गये अधिकतर पारिभाषिक शब्द अन्य प्रातिशाख्यों में उपलब्ध नहीं होते है।
  3. चतुर्दश पटल में उच्चारण-दोषों का जैसा साङ्गोपाङ्ग वर्णन किया गया है वैसा अन्यत्र कहीं नहीं मिलता है।
  4. ग्रन्थ की रचना सूत्रात्मक है तथा सूत्र रचना अस्पष्टता और कृत्रिमता से मुक्त है।
  5. इसमें ऋग्वेद संहिता की प्रत्येक विशिष्टताओं का उल्लेख किया गया है।

ऋग्वेदप्रातिशाख्य का प्रस्तुत संस्करण डॉ. वीरेन्द्र कुमार वर्मा द्वारा हिन्दी भाषा में अनुवादित है, इस संस्करण की निम्न विशेषताएँ इस प्रकार है

  1. इसमें पूर्ववर्ती आचार्यों से जो कार्य सिद्ध हो चुके है, उसका पिष्टपेक्षण नहीं किया गया है।
  2. ऋग्वेदप्रातिशाख्य का यह संस्करण अपने ढ़ग का सर्वप्रथम प्रयास है, इसमें प्रत्येक सूत्र का तत्संलग्न भाष्य का हिन्दी में आक्षरिक अनुवाद किया गया है।
  3. भाष्यस्थ प्रत्येक कठिन स्थल के विषय में टिप्पणी लिखी गई है।
  4. टिप्पणियों को सार्थक बनाने के लिए निर्यासात्मक गणितीय रुप के विषयों का भी उपन्यास किया गया है।
  5. विषयों को स्पष्ट करने के लिए कहीं-कहीं रेखा चित्रों की भी सहायता ली गई है।
  6. आवश्यकतानुसार संहिता-पाठ, पद-पाठ तथा क्रम-पाठ दिये गये हैं।
  7. सूत्रोक्त तथा भाष्योक्त प्रत्येक उदाहरण का मूल पाद-टिप्पणी में उल्लिखित किया गया है।
  8. इस ग्रन्थ के अन्त में पांच परिशिष्टों का भी सङ्कलन किया गया है।

आशा है कि इस ग्रन्थ के द्वारा पाठकों को इस प्रातिशाख्य सम्बन्धित दुर्बोध विषयों को समझने में सोविध्य होगा तथा शोधार्थियों के लिए ध्वनि एवं अक्षर सम्बन्धित विज्ञान में शोध का मार्ग प्रशस्त होगा।

Reviews

There are no reviews yet.

Be the first to review “Rigveda Pratishakhyam”

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Recently Viewed

You're viewing: Rigveda Pratishakhyam 800.00
Add to cart
Register

A link to set a new password will be sent to your email address.

Your personal data will be used to support your experience throughout this website, to manage access to your account, and for other purposes described in our privacy policy.

Lost Password

Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.

Close
Close
Shopping cart
Close
Wishlist