पुस्तक का नाम – रूपचन्द्रिका
लेखक का नाम – डॉ. सुखरामः
संस्कृतभाषा का शब्द भण्डार अपरिमित है। इसका विपुल वाङ्मय इन शब्दों के प्रयोग का विषय है। महाभाष्य के आरम्भ में एक रोचक प्रसंग शब्दों के प्रयोग क्षेत्र की बृहत्ता का सूचक है – पूर्वपक्षी कहता है कि भाषा में ऐसे भी शब्द हैं जिनका प्रयोगविषय नहीं है? इसके उत्तर में समाधान स्वरूप कहा गया है –
“महान् हि शब्दस्य प्रयोगविषयः। सप्तद्वीपा वसुमती त्रयो लोकाश्चत्वारो वेदाः साङ्गाः सरहस्या बहुधा भिन्ना एकशतमध्वर्युशाखाः, सहस्त्रवर्त्मा सामवेदः एकविंशतिधा बाह्वृच्यं नवधाथर्वणो वेदः।” वाकोवाक्यमितिहासः पुराणं वैद्यकमित्येतावाञ्छब्दस्य प्रयोगविषयः। एतावन्तं शब्दस्य प्रयोगविषयमनुनिशम्य ‘सन्त्यप्रयुक्ता’ इति वचनं केवलं साहसमात्रमेव।”
अर्थात् शब्दप्रयोग का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। शब्द का प्रयोगविषय सात द्वीपों वाली पृथिवी एवं तीनों लोकों तक व्याप्त है। वेदाङ्गों और उपनिषत् साहित्य सहित चारों वेद एवं उसकी 1130 शाखायें उक्तिप्रत्युक्तिरूप ग्रन्थ, इतिहास, पुराण, वैद्यक इत्यादि लौकिक साहित्य भी शब्दप्रयोग के विषय हैं। अतः इस सारे शब्द के विषय को जाने विना “अप्रयुक्त शब्द भी हैं” ऐसा कहना केवल साहसमात्र है।
अध्येता के विषयसौविध्य की दृष्टि से अनिवार्य है कि संस्कृत भाषा की इतनी विपुल शब्दराशि जिसमें शब्दरूप, धातुरूप, अव्यय, उपसर्ग, नामधातु आदि है, इनका क्रमिक उपस्थापन किया जाय। इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर इस रूपचन्द्रिका का निर्माण किया गया है। यद्यपि एतत्सम्बन्धी अन्य पुस्तकें भी उपलब्ध हैं किन्तु उनमें टङ्कण एवं रूप आदि अशुद्धियों को देखते हुए चिरकाल से एक ऐसी पुस्तक की आवश्यकता अनुभव की जा रही थी जो पाठकों के लिए उपयोगी एवं प्रामाणिक हो।
इस रूपचन्द्रिका में शब्दरूपावली एवं धातुरूपावली के साथ-साथ प्रारम्भिक संस्कृत व्याकरण के अध्ययन हेतु उपयोगी संख्या, अव्यय, उपसर्ग एवं कृत्तद्धित प्रत्ययों का भी उदाहरण पुरस्सर विवेचन है। संस्कृत व्याकरण की सूत्रशैलीगत जटिलताओं का परिहार करते हुए प्रयोगगत सुगमता पर बल दिया गया है। संख्या एवं सर्वनाम शब्दों का प्रस्तुतीकरण शब्दरूपों में मिश्रित रूप में न करके पृथक् प्रकरणानुसार रखा गया है। अव्यय एवम् उपसर्गों के अर्थ के साथ – साथ सरल वाक्यों में प्रयोग भी दर्शाया गया है। कृत् एवं तद्धित प्रत्ययों के अर्थ एवम् उनसे व्युत्पन्न पदों की विविधता को भी प्रत्ययगत व्याकरणिक परिवर्तन के साथ प्रस्तुत किया गया है। विभिन्न शब्दरूप एवं धातुरूपों की प्रामाणिकता का निर्धारण वैयाकरणसिद्धान्तकौमुदी एवं माधवीया धातुवृत्ति के अनुसार है।
आशा है कि संस्कृत पाठक इससे लाभान्वित होंगे एवं संस्कृत की गरिमा एवं संस्कृत की गरिमा एवं प्रतिष्ठा की वृद्धि करेंगे।
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