पुस्तक का नाम – संध्यापद्धतिमीमांसा
लेखक – आचार्य विश्वश्रवाः
ऋषिराज दयानन्द ने प्रत्येक गृहस्थ के लिए आवश्यकरूप से करणीय पांच महायज्ञों का विधान किया है। इनमें से प्रथम महायज्ञ के रूप में ब्रह्मयज्ञ विधेय है जो न केवल गृहस्थ, अपितु चारों आश्रमियों के लिए प्रथम व आवश्यक बताया गया है। संन्यासी को जहाँ कुछ कर्मों से मुक्त रखा गया है, वहाँ यह कर्म तो उसके लिए भी आवश्यक बताया गया है। समस्त उन्नति का कारण परमात्मा ही तो है। अतः ईश्वर की स्तुति, उपासना आवश्यक है।
प्रस्तुत् पुस्तक “संध्यापद्धतिमीमांसा” पञ्चमहायज्ञ विधि के ब्रह्मयज्ञ का भाष्य है।
इस ग्रंथ मे संध्या के प्रत्येक मन्त्र की मार्मिक व्याख्या प्रस्तुत की गयी है। संध्या की प्रत्येक पद्धति के कारणों पर प्रकाश डाला गया है, साथ ही महात्मा नारायण स्वामी और आत्मानन्द सरस्वती जी के विचारों का संकलन किया है। ग्रन्थ में स्वामी दयानन्द की पद्धति को यथावत् रूप में रखा गया है। साथ मे अन्य सहायक ग्रंथों के प्रमाणों को यथानुरूप रखा गया है।
प्रत्येक ब्रह्मोपासक के लिए यह ग्रन्थ अत्यन्त आवश्यक तथा उपयोगी है। महर्षि के हृदय को समझकर की गई इस व्याख्या को vedrishi.com वेबसाईट से प्राप्त करें।
पुस्तक का नाम – संध्यापद्धतिमीमांसा
लेखक – आचार्य विश्वश्रवाः
ऋषिराज दयानन्द ने प्रत्येक गृहस्थ के लिए आवश्यकरूप से करणीय पांच महायज्ञों का विधान किया है। इनमें से प्रथम महायज्ञ के रूप में ब्रह्मयज्ञ विधेय है जो न केवल गृहस्थ, अपितु चारों आश्रमियों के लिए प्रथम व आवश्यक बताया गया है। संन्यासी को जहाँ कुछ कर्मों से मुक्त रखा गया है, वहाँ यह कर्म तो उसके लिए भी आवश्यक बताया गया है। समस्त उन्नति का कारण परमात्मा ही तो है। अतः ईश्वर की स्तुति, उपासना आवश्यक है।
प्रस्तुत् पुस्तक “ संध्यापद्धतिमीमांसा” पञ्चमहायज्ञ विधि के ब्रह्मयज्ञ का भाष्य है।
इस ग्रंथ मे संध्या के प्रत्येक मन्त्र की मार्मिक व्याख्या की है। संध्या की प्रत्येक पद्धति के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। साथ ही महात्मा नारायण स्वामी और आत्मानन्द सरस्वती जी के विचारों का संकलन किया है। ग्रंथ मे स्वामी दयानन्द की पद्धति को यथावत् रूप रखा गया है। साथ मे अन्य सहायक ग्रंथों के प्रमाणों को यथानुरूप रखा गया है।
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वेद ऋषि
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