Vedrishi

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 सांख्य दर्शनम्

Sankhyadarshan

175.00

SKU 36625-VG00-0S Category puneet.trehan
Subject : Darshan
Edition : 2018
Publishing Year : 2018
SKU # : 36625-VG00-0S
ISBN : 9788170772712
Packing : Paperback
Pages : 208
Dimensions : 21cms X 13cms
Weight : 230
Binding : Papercover
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पुस्तक का नाम सांख्य दर्शनम्

भाष्यकार ब्रह्ममुनि परिव्राजक

सांख्ययोग पृथक् बाला: प्रवदन्ति न पण्डिताः अर्थात् सांख्यदर्शन और योगदर्शन में विरोध होने की बात बालबुद्धि जन करते है पंडित नहीं, इस प्रसिद्धि के अनुसार सांख्य और योग दोनों समान सिद्धांतवादी दर्शन हैं। दोनों ही मोक्ष शास्त्र हैं। जहाँ महर्षि पतञ्जलि योगदर्शन में अष्टाङ्ग योगसाधनो द्वारा समाधि और मोक्ष की प्राप्ति का वर्णन करते हैं वहाँ सांख्य दर्शन में भी पहले ही सूत्र में महर्षि कपिल ने त्रिविधदुःख निर्वृत्ति को ही अत्यंत पुरुषार्थ माना है जिसके बिना मोक्ष नहीं हो सकता है।

मध्यकालीन टीकाकारों ने भ्रान्ति से सांख्य दर्शन को निरीश्वरवादी मान लिया था। विद्वान् लोग सांख्य और योग को एक समान ईश्वरवादी ही मानते हैं। स्वामी ब्रह्ममुनि जी ने युक्ति और प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध किया है कि महर्षि कपिल ईश्वर को मानते थे। स्वामी ब्रह्ममुनि जी की व्याख्या आर्ष पद्धति के अनुकूल है। यह भाष्य नवीन भाष्यकारो के समान कल्पित और भारतीय दार्शनिक लक्ष्य का विरोधी नहीं है।

इस भाष्य की विशेष विशेषता यह हैं कि यहाँ पर सूत्रकार के मत को श्रुति-स्मृति प्रमाण से सिद्ध किया गया है। सांख्य दर्शन में आये कुछ उदाहरणों जैसे निराश: सुखी पिंगलावत् इत्यादि उदाहरणों का सारगर्भित अर्थ प्रस्तुत किया है। इस भाष्य में अनिरुद्ध और विज्ञानं भिक्षु के पाठ भेदों को दर्शाया गया है तथा प्राचीन होने से विज्ञानं भिक्षु के पाठों को लिया गया हैं।

यह दर्शन उन पाठकों के लिए लाभकारी होगा जो भारतीय दर्शन परम्परा की पृष्ठभूमि में इस दर्शन का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।

Weight 230 g

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