पुस्तक का नाम – सांख्य दर्शनम्
भाष्यकार – आचार्य आनन्द प्रकाश
महर्षि कपिल द्वारा प्रणीत सांख्य दर्शन छह अध्यायों का है। इस दर्शन का मुख्य उद्देश्य प्रकृति पुरुष की विवेचना करके पृथक-पृथक स्वरूप को दिखाना है, जिससे जिज्ञासु व्यक्ति बंधन के मूल कारण को जानकर अविद्या को नष्ट करके त्रिविध दुःखों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त कर सके।
सांख्य-शास्त्र ने २५ तत्व माने हैं तथा उनका विवेचन उनकी सृष्टि निर्माण आदि में भूमिका को बताया है। इस दर्शन पर ऋषि दयानन्द जी ने भागुरी भाष्य आर्ष होने से बताया था, किन्तु दुर्भाग्य से वर्तमान में यह उपलब्ध नहीं है। सांख्य-शास्त्र चिकित्सा शास्त्र के समान चतुर्व्यूह है, जैसे चिकित्सा शास्त्र में रोग, रोग के कारण, आरोग्य और औषधि ये चार बातें होती हैं वैसे ही यहाँ भी मोक्ष के लिए – हेय, हेयहेतु, हान, हानोपाय इन चार व्यूहों का वर्णन है। जिनमें त्रिविध दुःख ‘हेय’ हैं। उन त्रिविध दुःखों से अत्यंत निर्वृति ‘हान’ प्रकृति और पुरुष के संयोग से उत्पन्न अविवेक ‘हेयहेतु’ और विवेकख्याति ‘हानोपाय’ हैं।
इतना सब कुछ होने के बाद भी यह शास्त्र उपेक्षित सा ही रहा है। इस पर अच्छी सी व्याख्या न हो सकी। मध्यकाल में जो भी व्याख्या हुई उन सबने इस शास्त्र को नास्तिक दर्शन बना दिया। सूत्रों के सूत्रों से पृथक भाष्य किये गये। महर्षि दयानन्द ने इस शास्त्र को पठन-पाठन में स्थान दिया तथा कपिल मुनि को परम् आस्तिक बताया तथा सांख्य दर्शन ईश्वर विरोधी नही है यह प्रतिपादित किया उनकी ही प्रेरणा से आर्य समाज के अनेक विद्वानों ने इसका अनुवाद, भाष्य किया।
प्रस्तुत् भाष्य सांख्य सिद्धांतों को स्पष्ट बताता है तथा यथा सम्भव संक्षिप्त व्याख्या से युक्त है। सूत्र की पुष्टि में जगह-जगह अन्य वेद और वेद मूलक ग्रंथों के भी प्रमाण दिए गये हैं। प्रक्षिप्त सूत्रों का सकारण विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
आशा है यह व्याख्या सांख्य के सिद्धांतों को समझने में विशेष सहायक होगी।
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