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संस्कृत धातु कोषः

Sanskrit Dhatu Kosha

70.00

Subject : Dhatu Kosha
Edition : 2023
Publishing Year : 2023
SKU # : 36876-PP00-0H
ISBN : N/A
Packing : Paperback
Pages : 145
Dimensions : 14X22X6
Weight : 173
Binding : Paperback
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पुस्तक का नाम संस्कृत धातु कोषः
लेखक का नाम पं. युधिष्ठिरो मीमांसकः
संस्कृतभाषा के सभी शब्द आख्यातज है, ऐसा निरूक्त शास्त्र के प्रवक्ता यास्कादि तथा वैयाकरणों में शाकटायनादि आचार्यों का मत है। वैदिक शब्द तो सभी आचार्यों के मत में धातुज ही हैं। लौकिक तथा वैदिक शब्दों की मूल प्रकृतियों का निर्देश वैयाकरणों ने अपने अपने धातुपाठों में किया है। सम्प्रति पाणिनीय धातुपाठ ही अधिक प्रचलित है। उसके भी कई पाठ हैं। पाणिनि प्रभृति आचार्यों ने धातुओं के अर्थ संस्कृत भाषा में और वह भी सूत्रात्मक शैली में संक्षेप में दिये हैं। अतः उन का हिन्दी में क्या अर्थ है, वह बहुधा वैयाकरण जन भी बताने में असमर्थ रहते हैं। इतना ही नहीं, धातुएं अनेकार्थक हैं, जो अर्थ धातुपाठ में लिखे हैं, उन से भिन्न अर्थों में भी वे प्रयुक्त होती हैं। इसके साथ ही उपसर्गों के योग से धातुओं के अर्थ भी बदल जाते हैं।
अतः संस्कृत भाषा के प्रयोग के लिये धातुओं को विविध अर्थों एवं उपसर्गों के योग से हुए भिन्न भिन्न अर्थों का बोध होना अत्यावश्यक है।
पाणिनि से भी प्राचीन काशकृत्स्न का धातुपाठ भी उपलब्ध हो गया है। उस में पाणिनीय धातुपाठ की अपेक्षा 800 धातुएं भिन्न हैं। इस धात्वार्थ कोश में पाणिनीय धातुपाठ में उल्लिखित धातुओं का ही संग्रह किया है, परन्तु पाणिनीय धातुपाठ के सभी उपलब्ध पाठों का आश्रय लेने का प्रयत्न किया है।
संस्कृतभाषा में धात्वर्थों का निर्देश धातुवृत्तियों के अतिरिक्त आख्यात चन्द्रिका, कविरहस्य, क्रियाकलाप, क्रियापर्यायदीपिका और क्रियाकोष नामक ग्रन्थों में भी उपलब्ध होता है। आर्यभाषा में धात्वर्थ ज्ञान के लिये बृहत्काय संस्कृत हिन्दी कोशों का आश्रय लेना पड़ता है, जो कि प्रत्येक संस्कृत प्रेमी के लिये उपलब्ध करना कठिन है।
इस ग्रंथ की रचना द्वारा इस कठिनता को दूर किया है। इस ग्रंथ में पाणिनीय मूल धातुपाठानुसार प्रत्येक धातु का रूप और धात्वार्थ का निर्देश कर दिया है। इस कारण इस का स्वरूप पूर्व मुद्रित ग्रन्थ से भिन्न स्वतंत्र ग्रन्थवत् हो गया है। मूलधातु के आगे इत्संज्ञा और नुम् आदि कार्य करने पर धातु का जो व्यवहारोपयोगी अंश बनता है, उस का निर्देश पाणिनीय धातुरूप के आगे कोष्ठक में दिया है। उक्त धातुपाठ में किस स्थान में पढ़ी है, इसका सरलता से ज्ञान कराने के लिये गणसंख्या के साथ साथ धातुसूत्र संख्या भी दे दी है। धातुसूत्र संख्या क्षीरतरङ्गिणी और माधवीया धातुवृत्ति से पृथक् पृथक् है। इस ग्रन्थ में इनमें उल्लेख किया है।
आशा है कि यह ग्रंथ व्याकरण के छात्रों को, शोधार्थियों को अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होगा।

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