सृष्टि के आरंभ में ईश्वर ने चार वेदों का ज्ञान दिया। उन वेदों में लौकिक एवं आध्यात्मिक सैंकड़ों विद्याएँ बताईं। उन विद्याओं में से एक विद्या है, न्याय विद्या या न्याय दर्शन। इस विद्या की सहायता से व्यक्ति अपनी सांसारिक समस्याओं को भी सुलझा लेता है, और मोक्ष को भी प्राप्त कर लेता है। वैदिक न्याय विद्या को समझाने के लिए महर्षि गौतम जी ने एक ग्रंथ बनाया – न्याय दर्शन । न्याय दर्शन में कुल मिलाकर 5 अध्याय हैं। प्रत्येक अध्याय में दो-दो आह्निक हैं। सूत्र लगभग 528 हैं। इस न्याय दर्शन नामक ग्रंथ में जो सूत्र हैं, वे महर्षि गौतम जी के हैं। और इन सूत्रों पर संस्कृत भाषा में प्रामाणिक भाष्य, महर्षि वात्स्यायन जी ने किया। ये दोनों महापुरुष, बड़े ही तीव्र बुद्धि वाले, सत्य असत्य को समझाने में अच्छी प्रकार से समर्थ, महान ऋषि हैं। आजकल लोग संस्कृत भाषा और ऋषियों के ग्रंथ प्रायः पढ़ते नहीं। इसलिये इन न्याय आदि विद्याओं से अनभिज्ञ हैं। इस कारण से लोगों के सोचने, बोलने तथा आचरण करने में अनेक त्रुटियां होती रहती हैं। वे अपनी सांसारिक समस्याओं को भी नहीं सुलझा पा रहे, तथा मोक्ष प्राप्त करना तो और भी दूर की बात है। देखिये, कितने आश्चर्य की बात है, कि लोग गणित विद्या को
किसी गुरु जी से पढ़े बिना स्वयं को गणितज्ञ नहीं मानते। परन्तु तर्कशास्त्र (न्याय दर्शन) को किसी योग्य गुरु जी से पढ़े बिना ही, इसे समझे बिना ही, वे स्वयं को बड़ा तर्कशास्त्री मानते हैं। उनकी यही भ्रांति, सत्य को समझने में उनके लिए बहुत बड़ा बाधक है।
हमने इस वैदिक न्याय विद्या को समझने समझाने में पिछले लगभग 40 वर्षों में खूब परिश्रम किया है। ईश्वर की कृपा और पूज्य गुरुजनों के आशीर्वाद से इस विद्या को कुछ अच्छी प्रकार से समझा है। लोग इस उत्तम विद्या के न जानने से बहुत सी गलतियां करते हैं, लड़ाई झगड़े पाप कर्म आदि से परेशान हैं। वे स्वयं दुखी हैं तथा दूसरों को भी दुःख दे रहे हैं। अतः हमें ऐसा अनुभव हुआ, कि लोगों को इस उत्तम कल्याणकारी विद्या से परिचित कराया जाए। जिससे कि लोग अपनी गलतियों पाप कर्मों और दुखों से बच सकें। इसलिये हमने यह प्रयास आरंभ किया है। न्याय विद्या को समझाने के लिए, हम इन व्याख्यानों में जो कुछ भी कहेंगे; वह सब, वेदों, अन्य ऋषियों तथा इन दोनों ऋषियों द्वारा लिखे वैदिक विचारों के आधार पर ही कहेंगे। हमारा अपना व्यक्तिगत विचार कुछ भी नहीं होगा।
हमारा सभी सज्जनों से विनम्र निवेदन है, कि आप सब लोग भी इस विद्या को श्रद्धा पूर्वक सीखने का पूरा प्रयत्न करें। गलतियां करने से बचें। दुखों से छूट कर सुख को प्राप्त करें, एवं अपना और दूसरों का कल्याण करें।
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